कभी-कभी जीवन में ऐसा लगता है जैसे कितनी भी कोशिश कर लें, फिर भी सब कुछ उलझता ही जाता है। काम अटक जाते हैं, मन बेचैन रहता है और हर कदम पर देरी या रुकावट महसूस होती है। ऐसा समय अक्सर तब आता है जब कुंडली में चंद्र-शनि विष योग बनता है। यह योग तब बनता है जब चंद्र देव, जो हमारे मन और भावनाओं के स्वामी हैं, और शनि देव, जो कर्म और अनुशासन के स्वामी हैं, एक कठिन स्थिति में आ जाते हैं। इस योग के कारण व्यक्ति मानसिक रूप से दबाव में आ जाता है, उसे अकेलापन, असफलता और निराशा महसूस होती है, और जीवन भारी लगने लगता है।
लेकिन हमारे शास्त्रों में हर विष का उपाय बताया गया है, और उसका सबसे शक्तिशाली उपाय हैं भगवान शिव। वे ही एकमात्र ऐसे देव हैं जिन्होंने सृष्टि के सबसे बड़े विष को अपने कंठ में धारण किया था। पुराणों में बताया गया है कि जब समुद्र मंथन के समय भयंकर हलाहल विष निकला, तो पूरी सृष्टि संकट में पड़ गई थी। तब केवल भगवान शिव ने शांत मन से उस विष को पी लिया और नीलकंठ कहलाए। यह कथा सिखाती है कि चाहे जीवन का विष मानसिक हो, कर्म से जुड़ा हो या ग्रहों से उसे शांत करने की शक्ति केवल भगवान शिव के पास है। यही कारण है कि चंद्र देव शिव के मस्तक पर विराजमान हैं और शनि देव उनके परम भक्त हैं।
🌕 चंद्र-शनि विष योग शांति पूजा (विशेष प्रदोष काल पर)
कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी के पवित्र प्रदोष काल में, जो भगवान शिव की आराधना के लिए सबसे शुभ समय माना जाता है, यह विशेष पूजा की जाएगी। पूजा की शुरुआत ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पर कर्म दोष निवारण रुद्राभिषेक से होगी, जिससे पुराने कर्मों और नकारात्मक ऊर्जा का शमन होता है। इसके बाद नवग्रह मंदिर में शनि देव और चंद्र देव की आराधना की जाएगी। पूजा के दौरान 11,000 महामृत्युंजय मंत्रों का जप होगा, जो जीवन में सुरक्षा और संतुलन का कवच बनाता है। अंत में 108 दीपदान किया जाएगा, जिससे जीवन में प्रकाश, शांति और सकारात्मकता का प्रवेश होता है।
यह पवित्र अनुष्ठान श्री मंदिर के माध्यम से संपन्न किया जाएगा, जिसके द्वारा श्रद्धालु भगवान शिव, शनि देव और चंद्र देव – तीनों की संयुक्त कृपा प्राप्त कर सकेंगे।