पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष की 27 बेटियाँ थीं, जिनसे चंद्रमा ने विवाह किया था। चंद्रमा का अपनी एक पत्नी, रोहिणी, के प्रति विशेष लगाव था, जिससे अन्य पत्नियाँ नाराज़ हो गईं और राजा दक्ष से शिकायत की। राजा के समझाने के बाद भी चंद्रमा का व्यवहार नहीं बदला, जिससे राजा दक्ष ने उसे श्राप दे दिया, जिससे वह आकार में छोटे व कमजोर हो गए। जिससे चिंतित अन्य देवताओं ने राजा से अपना श्राप वापस लेने को कहा और उनसे वादा किया कि चंद्रमा उनकी प्रत्येक बेटी से समान रूप से मिलने जाएंगे। चूंकि राजा श्राप को पूरी तरह से दूर नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने चंद्रमा के लिए एक उपाय बताया। उन्होंने कहा कि आधे महीने में वो अपनी ताकत बहाल कर पाएंगे। इस प्रकार पूर्णिमा और अमावस्या की परंपरा बनी।
ज्योतिष के अनुसार रोहिणी को चंद्रमा का उच्च का बिंदु कहा जाता है इसलिए रोहिणी नक्षत्र में चंद्रदेव की पूजा करने से चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है। चंद्रमा मनुष्य की मनोदशा को नियंत्रित करता है और कुंडली में चंद्रमा के अशुभ होने पर निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है। शास्त्रों के अनुसार चंद्रदोष से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की आराधना महत्वपूर्ण मानी गई है। इसी कारण, प्रयागराज के सोमेश्वर महादेव मंदिर में रोहिणी नक्षत्र के दौरान चंद्र ग्रह शांति पूजा का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें 10,000 चंद्र मूल मंत्र जाप और हवन शामिल हैं। इस पूजा में भाग लेकर कुंडली में मौजूद चंद्र दोष के अशुभ प्रभाव से मुक्ति पाई जा सकती है।