ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति एवं बुध दोनों ही सर्वाधिक लाभकारी ग्रह माने गए हैं और इनमें काफी समानता भी है। ये दोनों ही ग्रह बुद्धिमत्ता, परिपक्वता, सूक्ष्मता एवं शांत स्वभाव का प्रतिनिधित्व करते हैं। जब ये दोनों ग्रह एक साथ किसी राशि में गोचर करते हैं तो इससे बुध-बृहस्पति युति बनती है। जिनकी कुंडली में ये युति बनती है, उन्हें सामान्यत: शुभ फल की प्राप्ति होती है लेकिन कई परिस्थितियों में इसके अशुभ प्रभाव भी देखने को मिलते हैं। बृहस्पति एवं बुध की युति व्यक्ति के अंदर अधिक जानकारी के लिए उत्सुकता पैदा करती है, लेकिन कई बार ये गुण समस्याओं को भी जन्म दे सकती है। वहीं अगर जातक की कुंडली में ये दोनों ही ग्रह नकारात्मक स्थिति में हो तो इससे जातक की दृष्टि या सुनने की क्षमता नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, उनके बीच की प्रकृति मित्रता व शत्रु दोनों के जैसी है, क्योंकि बृहस्पति, बुध को शत्रु मानता है लेकिन बुध बृहस्पति को तटस्थ यानि अपने समीप रहने वाला ग्रह मानता है। ऐसे में इस युति से होने वाले दुष्प्रभाव को कम करने के लिए ज्येष्ठ नक्षत्र पर यह पूजा करना लाभकारी हो सकता है। ज्येष्ठा नक्षत्र का स्वामी बुध ग्रह है, और गुरूवार का दिन बृहस्पति को समर्पित है इसलिए ज्येष्ठा नक्षत्र और गुरूवार के शुभ संयोग में बृहस्पति एवं बुध की युति के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए यह पूजा फलदायी साबित होती है।