🌸 कुरुक्षेत्र की पवित्र भूमि पर स्थित श्री देवीकूप भद्रकाली शक्तिपीठ में मां भद्रकाली को कुल-रक्षिका यानी परिवार और बच्चों की दैवीय संरक्षिका के रूप में पूजा जाता है। स्थानीय परंपराओं के अनुसार, जब आस-पास के गाँव अचानक होने वाली बीमारियों, भटकती नकारात्मक शक्तियों और बच्चों में डर की वजह से परेशान थे, तब गाँव के बुज़ुर्गों ने प्रार्थना की—“हमारे बच्चों की रक्षा करो, हमारे घरों की रक्षा करो।” माना जाता है कि मां भद्रकाली ने अपनी मातृरूप में यह पुकार सुनी और आशीर्वाद दिया—“जब तक मेरी ज्योति यहाँ जलती रहेगी, कोई बुरा असर न आएगा और कोई बच्चा आहत नहीं होगा।” तभी से उन्हें कई प्रदेशों में—केरल से बंगाल तक—गाँवों के प्रवेश द्वार पर रक्षक देवी के रूप में स्थापित किया जाने लगा। यही करुणामयी रूप इस मंगलवार देवीकूप शक्तिपीठ में पूजा जाता है।
🌸 हर माता-पिता के हृदय में एक ही मौन प्रार्थना होती है—“मेरा बच्चा सुरक्षित रहे।” जब बच्चा बार-बार बीमार होने लगे, डरकर उठे, या लगातार नज़र का प्रभाव महसूस हो, तो समस्या सिर्फ शारीरिक नहीं रहती। शास्त्रों में बच्चों को ऊर्जा का सबसे संवेदनशील ग्रहणकर्ता कहा गया है—वे आसानी से दैवीय कृपा भी लेते हैं और अनदेखे असंतुलन से भी प्रभावित हो सकते हैं। ऐसे समय में, जब अपनी सावधानी भी कम पड़ जाए और चिंता बढ़ने लगे, लोग स्वाभाविक रूप से उस दिव्य माता की ओर मुड़ते हैं जो मासूमियत और संकट के बीच ढाल बनकर खड़ी रहती हैं।
🌸 मंगलवार, जो उग्र शक्तियों के पूजन के लिए शुभ माना जाता है, विशेष महत्व रखता है क्योंकि इस दिन संरक्षण देने वाली शक्ति अधिक करुणामयी मानी जाती है। इस पवित्र पूजा में पहले मां भद्रकाली का आह्वान कर उनकी मातृ-सुरक्षा का आश्रय लिया जाता है, फिर चंडी हवन में पवित्र सामग्री अग्नि में समर्पित की जाती है ताकि नकारात्मकता शांत हो और बच्चे तथा घर के चारों ओर सुरक्षा-ऊर्जा मजबूत हो सके।
🌸 आप भी श्री मंदिर के माध्यम से इस शक्तिपीठ पूजा में भाग लेकर अपने बच्चे को मां भद्रकाली की दिव्य सुरक्षा सौंप सकते हैं—वह सुरक्षा, जिसे केवल एक दैवीय माता ही प्रदान करती हैं।