🌙 नवरात्रि की अष्टमी और नवमी, दोनों दिन मां विंध्यवासिनी और मां बृजेश्वरी की पूजा का विशेष महत्व है। मां विंध्यवासिनी देवी को शक्ति और संकल्प की अधिष्ठात्री माना गया है, जिनकी पूजा से जीवन में साहस, विजय और संतोष का आशीष मिलता है। वहीं, मां बृजेश्वरी देवी कांगड़ा में विराजमान हैं और उन्हें संकट हरने वाली और मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। अष्टमी और नवमी पर इन दोनों देवियों की आराधना से भक्तों को नकारात्मक शक्तियों से रक्षा, शत्रुओं पर विजय और सुख-समृद्धि की दिशा मिलती है।
ऐसा माना जाता है कि माँ ब्रजेश्वरी भक्तों के जीवन से अंधकार और भय को दूर करती हैं, वहीं माँ विंध्यवासिनी हृदय में सुख, वैभव और संतोष का संचार करती हैं। दोनों देवियों का आह्वान साथ-साथ किया जाए तो साधक के जीवन में संतुलन और नए बदलाव का प्रकाश फैलता है। अष्टमी को होने जा रहा 11 हजार मां विंध्यवासिनी मंत्र जाप भक्तों को शत्रु बाधा से राहत की दिशा दिखा सकता है।
🌙 पुराणों में वर्णित है कि जब महिषासुर का आतंक असहनीय हो गया, तब आदिशक्ति ने नौ रूप धारण कर धर्म की रक्षा की। इन्हीं में से माँ ब्रजेश्वरी का स्वरूप हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में शक्तिपीठ के रूप में पूजित है। कहते हैं कि यहाँ माँ सती का स्तन गिरा था, वहीं उनकी यह दिव्य पीठ स्थापित हुई। इस पीठ से ऐसी शक्ति प्रवाहित होती है, जो हर प्रकार की कमी और अभाव को दूर करने वाली मानी जाती है। विद्वानों का विश्वास है कि माँ ब्रजेश्वरी के 11 हजार बीज मंत्र जाप से जीवन में स्थिरता, साहस और वैभव का संचार होता है।
इस अनुष्ठान में नवमी पर 11 हजार विंध्यवासिनी बीज मंत्र जाप की शक्ति भी जुड़ी है। यह मां विंध्यवासिनी की कृपा पाने का अत्यंत प्रभावी साधन माना गया है। मां विंध्यवासिनी, जो नवरात्रि की अष्टमी और नवमी पर विशेष रूप से पूजित हैं, शक्ति और संकल्प की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। जब विद्वान श्रद्धा और नियमपूर्वक उनका मंत्र 11,000 बार जपते हैं, तो जीवन की बाधाएँ शांत होती हैं और साहस, आत्मबल और सफलता का शुभ आशीर्वाद मिलता है।
🌙 श्री मंदिर द्वारा आयोजित इस विशेष महापूजन में भाग लेकर भक्त अपनी श्रद्धा अर्पित कर सकते हैं और अपने जीवन को दो दिन के लिए देवी कृपा के प्रकाश से आलोकित कर सकते हैं।