शास्त्रों के अनुसार, नक्षत्रों और दिव्य शक्तियों का गहरा संबंध होता है। इनमें से अश्लेषा नक्षत्र को नागों का निवास माना गया है। इसका प्रतीक सर्प का कुंडल है, जो इसकी गहन और प्रबल ऊर्जा को दर्शाता है। नाग देवता अत्यंत आध्यात्मिक शक्ति से युक्त होते हैं। जब वे प्रसन्न होते हैं, तो संरक्षण, ज्ञान और सौभाग्य प्रदान करते हैं, जबकि अप्रसन्न होने पर जीवन में विभिन्न प्रकार की कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं। अश्लेषा नक्षत्र का दिन नागों की ऊर्जा के धरती पर सबसे प्रभावी होने का समय माना जाता है, और इस दिन उनकी आराधना विशेष फलदायी मानी जाती है।
इसी अवसर पर ‘नागबली’ नामक विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। ‘बली’ का अर्थ है श्रद्धापूर्वक अर्पण। इस पूजा का उद्देश्य नाग देवताओं का सम्मान करना और उनसे उन किसी भी जान-अनजाने दोषों के लिए क्षमा प्रार्थना करना है, जो हमारे या हमारे परिवार से कभी हुए हों। यह अनुष्ठान कर्नाटक के पवित्र स्थल गोकर्ण क्षेत्र में आयोजित किया जा रहा है। गोकर्ण वह स्थान है जहाँ भगवान शिव का आत्मलिंग विराजमान है। भगवान शिव स्वयं नागों के अधिपति हैं और वासुकी नाग को अपने गले में धारण करते हैं।
नागों के नक्षत्र तिथि पर इस पवित्र भूमि में नागबली पूजा करना, शिव और नाग देवताओं दोनों का आशीर्वाद प्राप्त करने का माध्यम माना जाता है। मान्यता है कि नागों की अप्रसन्नता से सर्प दोष उत्पन्न हो सकता है, जिससे विवाह में विलंब, संतान सुख में बाधा, स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ और कार्यों में असफलता जैसी स्थितियाँ सामने आ सकती हैं। अश्लेषा नागबली पूजा के माध्यम से भक्त उस दिव्य प्रार्थना से जुड़ सकते हैं। जिसके माध्यम से वह नाग देवता की प्रचंड शक्ति से सुरक्षा कवच प्राप्त कर सकते है।
🙏 श्री मंदिर के माध्यम से इस पवित्र अवसर पर गोकर्ण क्षेत्र में अश्लेषा नागबली पूजा में सम्मिलित होकर, नाग देवताओं के आशीर्वाद से नकारात्मकता और बाधाओं से मुक्ति की प्रार्थना करें।