सनातन धर्म में दुर्गा अष्टमी का पवित्र पर्व हर माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन माँ दुर्गा के दिव्य रूपों की पूजा करना अत्यंत शुभ और फलदायी होता है। यह पावन दिवस विशेष रूप से संकटों को दूर करने और जीवन में शुभता लाने के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। राह को कलयुग का अधिपति माना गया है, जो इच्छाओं, मोह, भौतिकवाद और छल का प्रतीक है। यही सभी गुण वर्तमान युग के प्रमुख लक्षण हैं। लेकिन माना जाता है कि राहु की ऊर्जा और प्रभाव को संतुलित करने के लिए उनकी नियंत्रक शक्ति, माँ दुर्गा के शक्तिस्वरूप की आराधना की जाती है। माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों में से माँ बगलामुखी को एक अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावी देवी के रूप में पूजा जाता है। वे नकारात्मकता को नष्ट करने, राहु के दुष्प्रभावों को शांत करने और बुद्धि, स्थिरता एवं सुरक्षा प्रदान करने के लिए जानी जाती हैं। अतः, दुर्गा अष्टमी पर माँ बगलामुखी की आराधना करने से राहु के प्रभाव कम होते हैं और व्यक्ति को आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नति प्राप्त होती है। इसलिए, दुर्गा अष्टमी का यह पर्व श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाना जीवन में शुभता और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राहु और केतु, स्वरभानु नामक असुर के के शरीर से उत्पन्न प्राणी हैं। इसमें सिर वाला भाग राहु एवं धड़ वाला भाग केतु कहलाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु-केतु की दशा चल रही हो, तो इससे प्रयासों में असफलता, पारिवारिक कलह, बुरी आदतों की लत, आर्थिक तंगी और निर्णय लेने में कठिनाई की संभावना बढ़ जाती है। भगवान शिव को राहु और केतु के अधिपति देवता माना गया है। यह विश्वास है कि उनकी आराधना से इन ग्रहों के अशुभ प्रभाव कम होते हैं। इसी कारण, राहु-केतु पीड़ा शांति पूजा और शिव रुद्राभिषेक को अत्यंत शुभ और फलदायी माना गया है। इस दिन शतभिषा नक्षत्र का संयोग भी होगा, जिसे राहु का नक्षत्र कहा जाता है। यह योग राहु-केतु शांति पूजा के लिए दिन को और अधिक शुभ और शक्तिशाली बनाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव की पूजा से ग्रह दोष कम होते हैं और जीवन में शांति और समृद्धि आती है। इसलिए, दुर्गा अष्टमी और शतभिषा नक्षत्र के इस पावन संयोग पर हरिद्वार के प्राचीन पशुपतिनाथ मंदिर में राहु-केतु पीड़ा शांति पूजा और शिव रुद्राभिषेक का आयोजन किया जा रहा है। आप श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष पूजा में भाग लेकर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करें और अपनी कुंडली में राहु और केतु के अशुभ प्रभावों से राहत पाएँ।