🙏 गंगा के पुनर्जन्म के दिन यानी गंगा सप्तमी को घर में समृद्धि को आमंत्रित करने के लिए सबसे शक्तिशाली दिनों में से एक क्यों माना जाता है?
गंगा सप्तमी, जिसे गंगा जयंती या जाह्नु सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है, एक अत्यंत पवित्र दिन है जो माँ गंगा के पुनर्जन्म की स्मृति कराता है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, गंगा को पृथ्वी पर अवतरित करने के लिए राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति हेतु कठोर तपस्या की थी। परंतु, गंगा के प्रचंड प्रवाह से पृथ्वी के नष्ट होने की आशंका थी, इसलिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में समाहित कर धीरे-धीरे पृथ्वी पर प्रवाहित किया। जब माँ गंगा पृथ्वी पर यात्रा कर रही थीं, तब उनका शक्तिशाली प्रवाह ऋषि जाह्नु के आश्रम को बहा ले गया। क्रोधवश ऋषि ने माँ गंगा की पूरी धारा पी ली। राजा भगीरथ और देवताओं की प्रार्थना के बाद ही ऋषि जाह्नु ने गंगा को अपने कान से पुनः प्रवाहित किया। इस प्रकार माँ गंगा का पुनर्जन्म हुआ और वह ऋषि जाह्नु की पुत्री ‘जाह्नवी’ के रूप में प्रसिद्ध हुईं।
शास्त्रों के अनुसार, यह दिव्य घटना वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को घटी थी, जिससे यह दिन अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है। भक्त इस दिन माँ गंगा की पूजा करते हैं और मानते हैं कि इससे जन्मों के पाप धुलते हैं तथा दिव्य कृपा प्राप्त होती है। इस पावन अवसर पर काशी के अस्सी घाट पर ‘रुद्राभिषेक और गंगा जन्मोत्सव पूजन के साथ गंगा को 1008 दीप दान’ का आयोजन किया जा रहा है। 1008 दीपों का दान जीवनदायिनी गंगा को प्रकाश अर्पित करने का प्रतीक है, और रुद्राभिषेक भगवान शिव के दिव्य आशीर्वाद का उत्सव है। इन अनुष्ठानों का यह शक्तिशाली संयोजन आंतरिक शुद्धि और घर में दिव्य ऊर्जा के प्रवाह का प्रतीक माना जाता है।
मान्यता है कि इस पूजा में भाग लेकर भक्त भौतिक सुख, आर्थिक समस्याओं से मुक्ति, पारिवारिक शांति और समग्र समृद्धि के लिए आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। माँ गंगा केवल एक नदी नहीं हैं, वे एक दिव्य चेतना हैं जो शुद्ध करती हैं और पोषण प्रदान करती हैं, जबकि भगवान शिव स्थिरता, शक्ति और अनुग्रह प्रदान करते हैं। आप भी श्री मंदिर के माध्यम से इस पवित्र अवसर पर प्रकाश, भक्ति और दिव्यता के मिलन के साक्षी बनें, और अपनी प्रार्थनाओं को माँ गंगा की शाश्वत धारा में अर्पित कर उनके आशीर्वाद से समृद्धि व शांति प्राप्त करें।