क्या राहु और केतु आपके जीवन में अस्थिरता ला रहे हैं? 🌌🙏
वैदिक ज्योतिष में राहु और केतु को छाया ग्रह कहा जाता है, जो सूक्ष्म लेकिन शक्तिशाली रूप से जीवन में बाधाएं उत्पन्न करते हैं – जैसे करियर में रुकावटें, स्वास्थ्य समस्याएं, रिश्तों में तनाव और मानसिक अशांति। इनके प्रभाव से भ्रम, बार-बार असफलता, गलत निर्णय और भावनात्मक परेशानी हो सकती है। शतभिषा नक्षत्र के समय इन ग्रहों के दोषों से मुक्ति पाने के लिए राहु-केतु शांति पूजा अत्यंत प्रभावशाली मानी जाती है। क्योंकि यह नक्षत्र राहु के अधिपत्य में आता है, इस दिन की गई पूजा विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है। पूजा के प्रभाव को बढ़ाने हेतु शिव रुद्राभिषेक भी किया जाता है। भगवान शिव को राहु और केतु दोनों के अधिदेवता माना जाता है, जिनकी कृपा से इनके नकारात्मक प्रभाव शांत होते हैं और जीवन में स्थिरता आती है।
🕉️ राहु और केतु की उत्पत्ति:
पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान असुर स्वरभानु ने देवताओं का वेश धारण कर अमृत पी लिया। सूर्य और चंद्र ने उसकी पहचान की और भगवान विष्णु को सूचना दी। विष्णु ने तुरंत अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट दिया। उसका सिर वाला भाग राहु बना और धड़ केतु। तब से ये दोनों ग्रह मानव जीवन पर गहरे कर्मिक प्रभाव डालते हैं।
इस पूजा का आयोजन उत्तराखंड के राहु पैठाणी मंदिर में किया जाएगा, जो भारत के कुछ गिने-चुने राहु मंदिरों में से एक है, जहाँ भगवान शिव के साथ राहु की भी पूजा होती है। यदि आप अनिश्चितता, रुकावटों या मानसिक बेचैनी से जूझ रहे हैं, तो श्री मंदिर के माध्यम से इस शतभिषा नक्षत्र में इस शुभ अनुष्ठान में भाग लें और प्राप्त करें मानसिक स्पष्टता, आध्यात्मिक रक्षा और जीवन में संतुलन का आशीर्वाद।