वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जब ग्रहों की स्थिति अनुकूल होती है, तो जीवन में शांति, सफलता और समृद्धि आती है। लेकिन जब यही ग्रह प्रतिकूल हो जाते हैं, तो व्यक्ति को मानसिक तनाव, आर्थिक तंगी, रोगों या कार्यों में रुकावट जैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। साढ़े साती, मांगलिक दोष, राहु–केतु दोष या शनि दोष जैसी स्थितियाँ जीवन में बार-बार अड़चनें और संघर्ष लेकर आती हैं। इन ग्रह दोषों को शांत करने के लिए शास्त्रों में नवग्रह शांति पूजा, शनि अभिषेक और विशेष हवन का विधान बताया गया है।
इस बार यह पूजा और भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि यह 18 अक्टूबर को पड़ने वाली शनि त्रयोदशी के पावन अवसर पर की जाएगी। शनि त्रयोदशी वह दिन है जब कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि शनिवार को आती है। इस दिन शनिदेव की विशेष पूजा की जाती है। इसे शनि प्रदोष व्रत भी कहा जाता है, और यह दिन शनि दोष, साढ़े साती और ढैय्या के प्रभाव को कम करने के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, शनि देव भगवान शिव के परम भक्त हैं। उनकी अटूट भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया था कि वे कर्मफलदाता बनकर जीवों के अच्छे और बुरे कर्मों का न्याय करेंगे। इसी कारण शनिदेव नवग्रहों में सबसे प्रभावशाली ग्रह माने जाते हैं। शनि त्रयोदशी पर की गई पूजा जीवन में स्थिरता और सौभाग्य लाने वाली मानी जाती है।
यह विशेष पूजा श्री नवग्रह शनि मंदिर, उज्जैन में संपन्न होगी, जहाँ शनि देव शिवलिंग रूप में विराजमान हैं। यह स्थान ग्रह शांति और कर्मों की संतुलन साधना के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। त्रयोदशी के दिन की गई पूजा से शनि देव और भगवान शिव दोनों की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में शांति, सुरक्षा और संतुलन आता है।
👉 इस विशेष शनि त्रयोदशी पूजा में शामिल हैं:
🔹 नवग्रह शांति पूजा – सभी नौ ग्रहों में संतुलन और मानसिक स्थिरता के लिए
🔹 शनि तिल-तेल अभिषेक – साढ़े साती, ढैय्या और शनि के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए
🔹 पाप ग्रह शांति हवन – राहु, केतु और अन्य अशुभ ग्रहों के प्रभाव को शांत करने के लिए
श्री मंदिर के माध्यम से इस शनि त्रयोदशी पूजा में सम्मिलित होकर जीवन में ग्रह शांति, मानसिक स्थिरता और आंतरिक सुरक्षा का अनुभव किया जा सकता है।