सनातन परंपरा में शरद पूर्णिमा को अत्यंत पवित्र और ऊर्जावान रात्रि माना गया है। इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ आकाश में उदित होता है और उसकी किरणें अमृत तुल्य मानी जाती हैं। शास्त्रों में उल्लेख है कि इस रात्रि की चंद्र ऊर्जा शरीर और मन दोनों पर गहरा प्रभाव डालती है। इसलिए यह समय साधना, ध्यान और देवी उपासना के लिए विशेष माना जाता है। इस पूर्णिमा को कोजागिरी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है "कौन जाग रहा है?" मान्यता है कि इस दिन जागरण कर साधना करने वाला भक्त आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष फल पा सकते हैं।
इस अवसर पर महाकाली की साधना का भी विशेष महत्व है। महाकाली को शक्ति, साहस और रक्षण की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। उनके खड़ग-माला स्तोत्र का पाठ साधक को भय, शंका और मानसिक दुर्बलता से उबारने का माध्यम बताया गया है। स्तोत्र में देवी के शस्त्रों और उनके दिव्य स्वरूपों का आह्वान होता है, जिससे साधक के भीतर आत्मबल और स्थिरता का भाव जाग्रत होता है। शरद पूर्णिमा की रात जब चंद्र ऊर्जा और देवी की शक्ति का संगम होता है, तब यह साधना और भी गहन प्रभाव छोड़ती है।
ज्योतिषीय दृष्टि से चंद्र ग्रह मन और भावनाओं का कारक माना जाता है। जब यह अशांत होता है तो व्यक्ति के जीवन में अस्थिरता और उलझन दिखाई देती है। इसीलिए शरद पूर्णिमा पर चंद्र ग्रह शांति अनुष्ठान का महत्व अत्यधिक है। इस दिन किए गए मंत्रजाप और अर्घ्य मानसिक संतुलन और स्पष्टता को बढ़ाने वाले माने जाते हैं। चंद्र ग्रह शांति और महाकाली साधना का संयोजन साधक को भीतर से स्थिर करता है और जीवन में संतुलित दृष्टि प्रदान करता है।
भारत के प्रमुख 51 शक्तिपीठों में से एक कालीघाट में महाकाली की इस साधना को और भी प्रभावशाली बना देती है। यहाँ देवी का स्वरूप चंडी रूप में प्रतिष्ठित है, जो साधना को साहस और सुरक्षा से जोड़ता है। शरद पूर्णिमा की रात्रि में महाकाली साधना और चंद्र ग्रह शांति का यह विशेष अनुष्ठान साधक के लिए एक गहन आध्यात्मिक अनुभव का अवसर है। आप इस अनुष्ठान में श्री मंदिर के माध्यम से सम्मिलित होकर देवी कृपा और चंद्र ऊर्जा का अनुभव कर सकते हैं।