🔱 भद्रकाली जयंती पर माँ काली के दिव्य आह्वान से पाएं नज़र दोष, काली शक्तियों और पीड़ाओं से पूर्ण राहत ✨
🔱 अधर्म का अंत करने वाली, कल्याण की अधिष्ठात्री — माँ भद्रकाली की आराधना से पाएं अपार शक्ति और रक्षा ✨
भद्रकाली जयंती और अपरा एकादशी दोनों ही पर्व हिंदू पंचांग के ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाए जाते हैं। यह दिन सनातन धर्म में अत्यंत प्रभावशाली और पुण्यदायक माना गया है। वायु पुराण के अनुसार, इसी दिन माँ आदिशक्ति ने माता सती के रौद्र रूप में भद्रकाली के रूप में अवतार लिया था। माँ भद्रकाली को महाकाली अथवा माँ काली के रूप में भी जाना जाता है। पुराणों की मान्यता के अनुसार, जब राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया और देवी सती ने यज्ञ में अपने प्राण त्याग दिए, तब भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो उठे। उनके क्रोध से उत्पन्न जटाओं से माँ भद्रकाली प्रकट हुईं, जिनका उद्देश्य था – अधर्मियों का विनाश, असुरों का संहार और धर्म की स्थापना। इसलिए माँ भद्रकाली को शक्ति, रक्षा और कल्याण की देवी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि उनकी आराधना से साधक को अद्भुत आत्मबल, साहस और रक्षा की अनुभूति होती है।
मान्यता है कि माँ भद्रकाली के जन्मोत्सव और अपरा एकादशी के इस विशेष संयोग पर जो भी भक्त सच्चे मन से उनका आह्वान करता है, वह माँ की कृपा से समस्त प्रकार की नकारात्मक शक्तियों से मुक्त हो जाता है। माँ भद्रकाली स्वयं नकारात्मक ऊर्जा, काले जादू और दृष्ट दोष जैसी बाधाओं का समूल नाश करती हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब कोई भक्त अपनी पीड़ा लेकर माँ भद्रकाली की शरण में आता है, तो माँ उसकी पीड़ा हर लेती हैं और उसे जीवन में नव आशा और ऊर्जा प्रदान करती हैं। जो जातक नजर दोष, काले जादू, स्वास्थ्य समस्याओं, व्यवसायिक रुकावटों या पारिवारिक कलह जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं, उनके लिए माँ भद्रकाली आशा की एक दिव्य किरण बनकर प्रकट होती हैं। माँ के इसी करुणामयी और उर्जादायक रूप के अनुभव हेतु श्री मंदिर के माध्यम से नज़र दोष दृष्टि शांति यज्ञ एवं भद्रकाली रक्षा कवच स्थापना अनुष्ठान का आयोजन किया जा रहा है।
🔱 दो महाशक्तिपीठों में आयोजित विशेष कॉम्बो पूजा: श्री तारापीठ और कालीघाट में माँ भद्रकाली की कृपा पाने का दुर्लभ अवसर
यह पूजन अत्यंत प्रभावशाली और दिव्य फलदायी हो, इस उद्देश्य से इसे 51 शक्तिपीठों में से दो प्रमुख शक्तिपीठों — श्री तारापीठ मंदिर और कालीघाट मंदिर — में आयोजित किया जा रहा है। पौराणिक मान्यता है कि भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के अंश पृथ्वी पर गिराए थे। उनमें से माँ सती की आंख की पुतली श्री तारापीठ में और दाहिने पैर की उंगली कालीघाट में गिरी थी, जिसके कारण ये दोनों स्थल शक्तिपीठ के रूप में पूजित हैं। आप भी माँ भद्रकाली की इस विशेष पूजा में सहभागी बनकर अपने जीवन से सभी बाधाओं, पीड़ाओं और नकारात्मक शक्तियों का अंत करें और शक्ति, रक्षा व कल्याण की देवी की कृपा प्राप्त करें। श्री मंदिर के माध्यम से माँ भद्रकाली की जयंती के दुर्लभ अवसर पर इस महानुष्ठान में भाग लेकर इन दिव्य स्थलों की ऊर्जा से स्वयं को सुशोभित करें।