वैदिक ज्योतिष में शतभिषा नक्षत्र को राहु का नक्षत्र कहा गया है। इसे उपचार और मुक्ति का नक्षत्र माना जाता है, क्योंकि यह छिपी हुई समस्याओं को उजागर कर जीवन में शुद्धिकरण और परिवर्तन लाता है। जब यह नक्षत्र शनिवार के दिन आता है, जो शनि देव का दिन है, तब एक दुर्लभ योग बनता है जिसमें कर्मजन्य बंधनों से मुक्ति पाने की विशेष संभावना होती है।
राहु और शनि दोनों ही कर्मफल के ग्रह माने गए हैं। राहु अधूरी इच्छाओं और भ्रम का प्रतीक है, जबकि शनि अनुशासन, न्याय और कर्मों के फल का द्योतक है। जब ये दोनों ग्रह एक साथ प्रभाव डालते हैं, तो इसे श्रापित योग कहा जाता है। यह योग व्यक्ति के जीवन में रुकावटें, असफलता और विलंब लाता है। राहु बुद्धि को भ्रमित करता है और शनि स्थिरता में बाधा डालता है।
कहा जाता है कि श्रापित दोष पिछले जन्मों के कर्मों के कारण उत्पन्न होता है। यह न केवल व्यक्ति को प्रभावित करता है, बल्कि कभी-कभी आने वाली पीढ़ियों तक भी असर डालता है। इस दोष की शांति के लिए राहु-शनि श्रापित दोष शांति हवन और तिल तेल अभिषेक करना अत्यंत प्रभावी माना गया है। विशेष रूप से जब यह पूजा शतभिषा नक्षत्र और शनिवार के दिन की जाती है, तब इसका प्रभाव और भी बढ़ जाता है।
इस हवन में राहु देव की चिकित्सा ऊर्जा और शनि देव की न्याय शक्ति को आमंत्रित किया जाता है। यह नकारात्मक ऊर्जा को शुद्ध करता है, विलंबों को समाप्त करता है और जीवन में स्थिरता और स्पष्टता लाता है। श्री मंदिर इस विशेष पूजा का आयोजन उत्तराखंड के पौड़ी स्थित राहु पैठाणी मंदिर में कर रहा है, जहाँ माना जाता है कि स्वयं राहु देव की दिव्य ऊर्जा विद्यमान है।
इस दिव्य हवन और अभिषेक में भाग लेकर आप अपने जीवन से राहु-शनि श्रापित दोष के प्रभाव को दूर कर सकते हैं और स्थिरता, सुरक्षा और सफलता की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।