☸️ श्राद्ध पक्ष के आखिरी दिन रामेश्वरम घाट पर पितृ शांति महापूजा और तिल तर्पण का अवसर ☸️
📿हिंदू धर्म में रामेश्वरम घाट पर पितृ दोष शांति महापूजा का बेहद धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। मान्यता है कि यहां की गई पितृ दोष शांति महापूजा और तिल तर्पण पूर्वजों की आत्मा को तृप्त कर उन्हें मोक्ष प्रदान करता है। रामेश्वरम वह पवित्र स्थान है, जहां भगवान श्रीराम ने लंका विजय के बाद पितरों की शांति के लिए पूजा की थी। शास्त्रों के अनुसार, यहां की गई पितृ दोष शांति महापूजा से जीवन की बाधाएं, पारिवारिक कलह, आर्थिक संकट और मानसिक अशांति दूर हो सकती है। महालया अमावस्या पर इस पवित्र अनुष्ठान से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है, जिससे परिवार में सुख-समृद्धि और स्थिरता बढ़ सकती है।
🌸पितृ पक्ष के दौरान किया जाने वाला तिल तर्पण एक पवित्र वैदिक अनुष्ठान है, जो पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए किया जाता है। इसमें काले तिल, जल, कुशा और मंत्रोच्चारण के साथ पूर्वजों को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि तिल तर्पण से पितृ दोष के दुष्प्रभाव कम होते हैं और पितरों की आत्मा तृप्त होकर आशीर्वाद देती है। यह अनुष्ठान पवित्र रामेश्वरम जैसे तीर्थ स्थल पर कराना बेहद शुभ माना जाता है। तिल का प्रयोग पवित्रता, श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है, जो पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करता है और जीवन में शांति एवं समृद्धि के द्वार खोल सकता है।
🪔 महालया अमावस्या हिंदू धर्म में पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए समर्पित एक अत्यंत पवित्र तिथि है। यह दिन पितृ पक्ष का समापन माना जाता है, जब श्रद्धापूर्वक श्राद्ध, तर्पण और विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन पितरों की आत्माएं धरती पर आती हैं और श्रद्धा से किए गए कर्मकांडों को स्वीकार कर आशीर्वाद देती हैं। महालया अमावस्या पर किए गए तर्पण और दान से पितृ दोष दूर हो सकते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि, पारिवारिक सामंजस्य और मानसिक शांति की दिशा मिलती है। यह अनुष्ठान इस साल का आखिरी और सुनहरा अवसर है, जिसे हाथ से न जाने दें!
🔥रामेश्वरम घाट का महत्व जाने बिना यह अनुष्ठान अधूरा है। हिंदू धर्म में यह घाट अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक माना गया है। यह स्थान चार धामों में से एक है और मान्यता है कि यहां स्नान और पितृ कर्मकांड करने से सभी पापों का शुद्धिकरण संभव है। पुराणों के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंका विजय के बाद इसी स्थान पर शिवलिंग स्थापित कर पूजा की थी, जिससे इसे मोक्षदायिनी भूमि का दर्जा मिला।
इस पावन अवसर पर श्रद्धालु अपने पूर्वजों की शांति और परिवार की भलाई की कामना के साथ श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष अनुष्ठान में भाग ले सकते हैं।