हिंदू पंचांग के अनुसार, जब कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की सप्तमी रविवार को पड़ती है, तो उस दिन भानु सप्तमी मनाई जाती है। इस दिन को सूर्य सप्तमी या वैवस्वत सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। भानु भगवान सूर्य का दूसरा नाम है। भानु सप्तमी का धार्मिक महत्व बेहद अधिक है क्योंकि यह पूरी तरह से भगवान सूर्य के सम्मान के लिए समर्पित है। इस दिन का महत्व भगवान कृष्ण ने भी युधिष्ठिर को इसका महत्व समझाया था। पुराणों के अनुसार, जब भगवान सूर्य पहली बार सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर प्रकट हुए और पृथ्वी से अंधकार को दूर करने के लिए अपनी किरणें फैलाईं, तो वह दिन सप्तमी तिथि थी। भगवान सूर्य के प्रकट होने के सम्मान में भानु सप्तमी या सूर्य सप्तमी मनाई जाती है। कलयुग में सूर्य देव एकलौते ऐसे देव है जो प्रत्यक्ष रूप में हैं। मार्कंडेय पुराण के अनुसार, सम्पूर्ण जगत जब अंधकार में डूबा था, तब ब्रह्मा जी के मुख से निकले प्रथम शब्द ‘ॐ’ के तेज से ही सूर्य की उत्पत्ति हुई थी। वेदों में सूर्यदेव को साहस, प्रसिद्धि, राजनीति, नेतृत्व क्षमता, आत्मविश्वास और ऊर्जा प्रदान करने वाला देवता बताया गया है। कहते हैं कि सूर्यदेव की उपासना से व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है।
यही कारण है कि भक्त सूर्यदेव को प्रसन्न करने और उनका आशीष प्राप्त करने के लिए कई तरह के अनुष्ठान करते हैं, जिनमें से सूर्य गायत्री मंत्र का जाप एवं आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ भी एक है। सूर्य गायत्री मंत्र यानी “ॐ आदित्याय विद्महे, प्रभाकराय धीमहि, तन्नो सूर्य प्रचोदयात्”, सूर्य देव को समर्पित एक शक्तिशाली मंत्र है। कहा जाता है कि इस मंत्र के जाप के माध्यम से सूर्य देव जैसा तेज उत्पन्न होता है। वहीं आदित्य स्तोत्र पाठ का वर्णन वाल्मीकि रामायण में मिलता है, जहां ऋषि अगस्त्य ने भगवान राम को रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए इसका वर्णन किया था। कहा जाता है कि यह श्रृद्धापूर्वक इस स्तोत्र का पाठ किया जाए तो व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। इसलिए भानु सप्तमी पर श्री गलता जी सूर्य मंदिर में इस अनुष्ठान का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इसमें भाग लें और सूर्य देव द्वारा राजनीति एवं सरकारी नौकरियों में सफलता का आशीष प्राप्त करें।