📿 क्या आपको लगता है कि आपके पूर्वज अशांत और अप्रसन्न हैं, जिसकी वजह से आपके जीवन में लगातार परेशानियाँ और रुकावटें बनी रहती हैं? 🪔👁️🗨️
ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष पूर्वजों की शांति और आशीर्वाद के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण समय माना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस अवधि में पितृ लोक के द्वार खुले रहते हैं और पूर्वजों की आत्मा को श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण से संतोष और शांति मिल सकती है। यह भी धारणा है कि इन कर्मकांडों से पितृ दोष कम हो सकता है और परिवार पर पूर्वजों की कृपा बनी रह सकती है। विशेषकर श्राद्ध दशमी को शास्त्रों में अत्यधिक फलदायी बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किए गए तर्पण और पिंडदान से तीन पीढ़ियों तक का मार्ग सरल हो सकता है।
तीन पीढ़ियों की कृपा को एक पवित्र अनुष्ठान के माध्यम से आमंत्रित करें 🙏🪔✨
त्रिपिंडी श्राद्ध इस अनुष्ठान का प्रमुख अंग है, जिसमें तीन पीढ़ियों पिता, पितामह और प्रपितामह के लिए तिल, चावल और कुशा से बने पिंड अर्पित किए जाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से पितरों की आत्मा शांत होकर परिवार पर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती है। वहीं पिंड दान के अंतर्गत चावल, तिल, पुष्प और जल से बने पिंड पवित्र तीर्थस्थल या नदी में अर्पित किए जाते हैं। इसे पितृ दोष निवारण के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। इसी प्रकार, तिल तर्पण पितृ शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण कर्म है। तिल और जल से अर्पित तर्पण पितरों की आत्मा को संतुष्ट करने में सहायक माना जाता है और परिवार में रुकी हुई उन्नति के मार्ग खोलता है। माना जाता है कि श्राद्ध दशमी पर तिल तर्पण करने से पितृ दोष का प्रभाव भी कम होता है और परिवार में शांति, सौहार्द और समृद्धि का संचार होता है।
🛕 इन सभी अनुष्ठानों के लिए गया की धर्मारण्य वेदी को विशेष स्थान प्राप्त है। ऐसा माना जाता है कि स्वयं भगवान श्री विष्णु जी ने यहां पितरों को तर्पण अर्पित कर उन्हें मोक्ष प्रदान किया था। इसलिए यह स्थल पितृ अनुष्ठानों के लिए सर्वोच्च तीर्थ माना जाता है।
🙏 श्री मंदिर द्वारा इस पितृ पक्ष में, विशेषकर श्राद्ध दशमी तिथि पर, धर्मारण्य वेदी गया में त्रिपिंडी श्राद्ध, पिंड दान और तिल तर्पण कराया जाएगा। यह अवसर साधकों को पूर्वजों की आत्मा की शांति के साथ-साथ उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का मार्ग प्रदान करता है।