🙏 क्या आपके पितरों की आत्माएँ अब भी अशांत हैं? गया की पवित्र भूमि पर उनके लिए प्रार्थना करें, जहाँ किए गए कर्म उनके लिए शांति और मुक्ति का मार्ग माने जाते हैं।
गया का नाम गयासुर नामक महान भक्त के नाम पर पड़ा है। उन्होंने इतनी गहन तपस्या की कि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर गयासुर को वरदान दिया कि उनका शरीर ही सबसे पवित्र तीर्थ बनेगा। तब से गया भूमि पितृ कर्मों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यहाँ किया गया पिंड दान और श्राद्ध पितरों की आत्मा को मोक्ष दिलाने वाला माना गया है।
इस पूजा में तीन प्रमुख विधियाँ सम्मिलित होती हैं। पहली है पिंड दान, जिसमें चावल से बने पिंड अर्पित किए जाते हैं और ऐसा माना जाता है कि इससे पितरों को आगे की यात्रा के लिए शक्ति और संतोष प्राप्त होता है। दूसरी है तिल तर्पण, जिसमें काले तिल और जल से तर्पण किया जाता है, जिसे पितरों की प्यास शांत करने का उपाय माना गया है। तीसरी है त्रिपिंडी श्राद्ध, जो उन पितरों के लिए किया जाता है जिनकी मृत्यु अकाल या अप्राकृतिक रूप से हुई हो अथवा जिनका वार्षिक श्राद्ध किसी कारणवश रह गया हो। इस विधि से अशांत आत्माओं की मुक्ति की प्रार्थना की जाती है। गया स्थित धर्मारण्य वेदी पर यह कर्म करना अत्यंत पवित्र माना गया है। यही वह स्थान है जहाँ धर्मराज युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध में वीरगति को प्राप्त योद्धाओं की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया था।
ऐसा विश्वास है कि इन पवित्र कर्मों से परिवार पितृ दोष से मुक्ति की प्रार्थना कर सकता है। जब पितर संतुष्ट होते हैं तो वे परिवार को आशीर्वाद देते हैं, जिससे शांति, सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। श्री मंदिर के माध्यम से यह विशेष पूजा आपके पितरों की आत्मा की शांति और परिवार के कल्याण के लिए एक प्रार्थना है।