🔱 इस विशेष पूर्णिमा पर एक नहीं, 4 महाविद्याओं से पाएं थकान, उलझन और जीवन की परेशानियों से राहत का मार्ग✨
आज का समय थकान, रिश्तों की उलझनों और आत्मविश्वास की कमी से भरा हुआ है। कई बार सब कुछ होते हुए भी मन खाली और अस्थिर लगता है। ऐसे समय में मन को ऐसा सहारा चाहिए, ऐसी शक्ति चाहिए जो हमें भीतर से शांति और संतुलन दे सकें। पूर्णिमा का दिन ऐसा ही एक समय माना जाता है। इस दिन चंद्रमा की पूर्ण रोशनी मन को ठहराव देती है और सही साधना से मन का डर और बेचैनी धीरे-धीरे कम होने लगती है।
पूर्णिमा हर महीने शुक्ल पक्ष की पंद्रहवीं तिथि को आती है और इसे देवी-पूजन और ध्यान के लिए शुभ माना गया है। चंद्रमा की चमक इस दिन मन और आत्मा को अलग तरह की ऊर्जा देती है। इस दिन चंद्र पूजा के साथ-साथ माँ तारा, त्रिपुर सुंदरी, भैरवी और ललिता की साधना भी की जाती है। माना जाता है कि इनकी उपासना से मन को स्थिरता और भीतर से संतुलन मिलता है।
🌸 माँ तारा – दया और मार्ग दिखाने वाली शक्ति, जो बेचैनी को कम करती हैं।
🌸 माँ भैरवी – भीतर के डर और असंतुलन को शुद्ध करती हैं।
🌸 माँ त्रिपुर सुंदरी – सहजता और संतुलन देने वाली देवी, जो जीवन में स्पष्टता लाती हैं।
🌸 माँ ललिता – करुणा और माधुर्य का स्वरूप, जो मन को शांति देता है।
इस दिन तीन प्रसिद्ध शक्तिपीठों में विशेष पूजा का आयोजन हो रहा है:
🔸 कालीघाट मंदिर – 51 शक्तिपीठों में से एक, जहाँ माता सती के दाहिने पैर की उंगली गिरी थी। यहां माँ भैरवी की पूजा होगी।
🔸 तारापीठ मंदिर – तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र, जहाँ माता सती की आंख की पुतली गिरी थी। यहां माँ तारा की साधना होगी।
🔸 माँ ललिता देवी मंदिर – त्रिवेणी संगम के पास स्थित, जहाँ माता सती की हाथ की उंगली गिरी थी। यहां माँ त्रिपुर सुंदरी और माँ ललिता की पूजा होगी।
आप भी श्री मंदिर के माध्यम से इस पूर्णिमा साधना में शामिल होकर माँ के इन रूपों की उपासना कर सकते हैं। यह दिन मन को शांति देने और भीतर की शक्ति को जगाने का अवसर है। जब मन डगमगाता है, तब माँ ही संभालती हैं।