ज्योतिष शास्त्र में राहु को एक रहस्यमय और प्रभावशाली ग्रह माना जाता है। यह ग्रह जीवन में अचानक परिवर्तन लाने से जुड़ा होता है, जिससे कभी सुखद तो कभी कठिन अनुभव सामने आते हैं। जब राहु किसी अन्य ग्रह के साथ युति करता है, तो व्यक्ति के मन पर उसका प्रभाव बढ़ सकता है। ऐसे समय में मानसिक बेचैनी, भय, तनाव, भ्रम और सामाजिक स्तर पर असहजता जैसी स्थितियां देखी जाती हैं। राहु दोष के प्रभाव में जीवन में बार बार रुकावटें आना, अचानक समस्याएं आ जाना और आत्मविश्वास में कमी महसूस होना सामान्य रूप से देखा जाता है।
वहीं यदि राहु कुंडली में अनुकूल स्थिति में हो, तो व्यक्ति में अलग सोच, तेज निर्णय क्षमता और आगे बढ़ने की तीव्र इच्छा दिखाई देती है। ज्योतिष में राहु को छाया ग्रह कहा गया है। इसका कोई भौतिक रूप नहीं होता, फिर भी इसका प्रभाव व्यक्ति के विचारों, व्यवहार और जीवन की दिशा पर गहरा पड़ता है। इन्हीं प्रभावों को संतुलित करने के उद्देश्य से उत्तराखंड के पौड़ी जिले में स्थित राहु पैठाणी मंदिर को विशेष महत्व माना जाता है। यह भारत के उन चुनिंदा मंदिरों में से एक है, जहां राहु की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय असुर स्वर्भानु ने छल से अमृत ग्रहण कर लिया था। यह जानकर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर अलग कर दिया।
जहां स्वर्भानु का सिर गिरा, उसी स्थान पर इस मंदिर की स्थापना मानी जाती है और वही सिर आगे चलकर राहु के नाम से जाना गया। इस मंदिर में भगवान शिव के साथ राहु की धड़विहीन प्रतिमा विराजमान है। राहु पैठाणी मंदिर में विशेष रूप से राहु दोष शांति से जुड़े पूजन, मंत्र जाप और हवन किए जाते हैं। राहु के स्वाति नक्षत्र के समय यहां किए गए अनुष्ठानों को विशेष महत्व है। इसी क्रम में, इस पावन अवधि के दौरान मंदिर में 18,000 राहु मूल मंत्र जाप और दशांश हवन का आयोजन किया जा रहा है। यह अनुष्ठान जीवन में चल रहे मानसिक दबाव, अस्थिरता और बार बार आने वाली बाधाओं के प्रभाव को संतुलित करने की भावना से जुड़ा हुआ है।
श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष अनुष्ठान में सहभागिता कर राहु से जुड़े प्रभावों को समझने, आत्मबल को मजबूत करने और जीवन में संतुलन व शांति की अनुभूति की दिशा में एक सार्थक कदम उठाया जा सकता है।