🔱 पवित्र काशी-रामेश्वरम-गोकर्ण में सावन के आखिरी एकादशी को पितृ शांति पूजा एवं यज्ञ से पितृ दोष से राहत का आशीर्वाद प्राप्त करें। 🔱
यदि जीवन में बार-बार बिना कारण काम बिगड़ते हैं, विवाह, संतान या करियर में रुकावटें आती हैं, या घर में मानसिक अशांति और झगड़े बने रहते हैं, तो यह पितृ दोष का संकेत हो सकता है। ऐसा तब होता है जब पूर्वजों की आत्मा संतुष्ट नहीं रहती या उनके लिए सही ढंग से श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान न किए जाएं। इससे जीवन में आर्थिक समस्या, वैवाहिक परेशानी, संतान संबंधी कठिनाई और पुराने रोग जैसे संकट आ सकते हैं। पितृ दोष को शांत करने के लिए केवल सामान्य पूजा काफी नहीं होती, इसके लिए शास्त्र अनुसार विशेष विधि जरूरी मानी गई है। यह विधि पितरों को संतोष, शांति और मोक्ष देने में सहायक होती है।
सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है, जो मोक्ष प्रदान करने वाले देवता माने जाते हैं। इस समय की आध्यात्मिक ऊर्जा विशेष रूप से पितृ शांति जैसे कर्मों के लिए फलदायी मानी जाती है। जब सावन की पवित्रता में एकादशी का दिन आता है, तब यह समय और भी प्रभावशाली हो जाता है। मान्यता है कि इस दिन किए गए कर्म पितरों तक सीधे और प्रभावशाली रूप से पहुँचते हैं।
इसी कारण सावन की आखिरी एकादशी को श्री मंदिर द्वारा त्रि-तीर्थ पितृ शांति पूजा का आयोजन किया जा रहा है। यह पूजा काशी के पिशाच मोचन कुंड, रामेश्वरम घाट और गोकर्ण क्षेत्र में एक साथ की जाएगी। ऐसा माना जाता है कि इन तीनों स्थानों पर की गई पितृ पूजा अत्यंत फलदायी होती है। काशी में स्थित पिशाच मोचन कुंड के बारे में गरुड़ पुराण में उल्लेख मिलता है कि यहां पिंडदान करने से पितरों को शांति और मोक्ष प्राप्त होता है। रामेश्वरम वह पवित्र स्थल है जहां भगवान श्रीराम ने अपने पिता दशरथ के लिए श्राद्ध कर एक अनुपम आदर्श स्थापित किया, जिसकी परंपरा आज भी श्रद्धा से निभाई जाती है। वहीं गोकर्ण, जो आत्मलिंग की भूमि के रूप में प्रसिद्ध है, वहां के कोटितीर्थ और समुद्र संगम पर किया गया तर्पण पितरों की आत्मा को शांति देने वाला माना जाता है।
इस सावन एकादशी त्रि-तीर्थ पितृ शांति अनुष्ठान में सहभागी बनकर आप न सिर्फ अपने पितरों के प्रति अपना कर्तव्य निभाते हैं, बल्कि अपने कुल में शांति, उन्नति और शुभ आशीर्वाद के द्वार भी खोलते हैं।