क्या शनि के प्रकोप से बनते-बनते काम बिगड़ रहे हैं? 🤔🔯
यदि हाँ, तो इस शनि जयंती अपनाएं शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से राहत पाने का सबसे प्रभावी उपाय 🕉️🙏
ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाई जाने वाली शनि जयंती हिंदू धर्म में अत्यंत धार्मिक, आध्यात्मिक और ज्योतिषीय महत्व रखती है। यह पावन तिथि भगवान शनि के जन्म का प्रतीक मानी जाती है। भगवान शनि, सूर्य देव और छाया (संवर्णा) के पुत्र हैं, जिन्हें न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शनि प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं।यदि कर्म शुभ हों तो कृपा प्राप्त होती है, और यदि अशुभ हों तो व्यक्ति जीवन की कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करता है। इसीलिए शनि को आत्मचिंतन, अनुशासन और न्याय का प्रतिनिधि ग्रह माना गया है। ज्योतिषीय दृष्टि से भी शनि का प्रभाव अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। वे एक ओर जीवन में विकास की दिशा में प्रेरित करते हैं, तो दूसरी ओर वह व्यक्ति की परीक्षा भी लेते हैं। जिन जातकों की कुंडली में शनि प्रतिकूल स्थिति में होते हैं, उनके जीवन में करियर में रुकावटें, पारिवारिक तनाव, मानसिक अस्थिरता और आर्थिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। ऐसे में शनि जयंती का दिन विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण होता है जो साढ़े साती, ढैय्या या कर्मिक असंतुलन के कारण कठिन समय से गुजर रहे होते हैं। इसीलिए इस शनि जयंती के दिन श्री मंदिर के द्वारा कोसी कलां में एक खास पूजा का आयोजन किया जा रहा है। इस पूजा में पीपल वृक्ष शनि शिला स्थापना जैसे अनुष्ठान शामिल है। इसमें एक पवित्र पीपल के पेड़ के नीचे शनि देव की शिला को स्थापित किया जाएगा और विशेष रूप से उनकी पूजा की जाएगी।
ऐसा भी माना जाता है कि शनि देव पीपल के वृक्ष में वास करते हैं और जो भक्त पीपल के नीचे शनि देव की पूजा करते हैं, उन्हें विशेष कृपा प्राप्त होती है, और साढ़ेसाती या ढैय्या के प्रभाव कम होने लगते हैं। इसीलिए, इस शनि जयंती पर श्री मंदिर द्वारा कोसी कलां में एक विशेष पूजा का आयोजन किया जा रहा है। इस अनुष्ठान में “पीपल वृक्ष शनि शिला स्थापना” प्रमुख रूप से की जाएगी, जिसमें पीपल के वृक्ष के नीचे शनि देव की शिला स्थापित कर विधिपूर्वक पूजा की जाएगी। इसके साथ ही “शनि कवच स्तोत्र” का पाठ किया जाएगा, जो जीवन से भय, अस्थिरता और नकारात्मकता को दूर करने में सहायक होता है। पूजा के दौरान “शनि शांति यज्ञ” भी किया जाएगा, जिससे व्यक्ति के जीवन में कर्मों का संतुलन बना रहे। इसके अतिरिक्त, भगवान कृष्ण और शनि देव के विशेष संबंध की स्मृति में “कृष्ण गोविंदा मंत्र जाप” भी कराया जाएगा। इसके पीछे मान्यता है कि जब माता यशोदा ने शनि देव को बालकृष्ण से दूर कर दिया, तो वे नंदगांव के पास तपस्या में लीन हो गए। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण कोकिला के रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए ऐसा माना जाता है कि कृष्ण नाम के जाप से भी शनि देव प्रसन्न होते हैं और मन में शांति आती है।
आप भी इस शनि जयंती पर कोसी कलां स्थित श्री शनिदेव मंदिर में श्री मंदिर के माध्यम से आयोजित इस दिव्य अनुष्ठान में भाग लेकर शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त करें।