🌺 काशी के एकमात्र शक्तिपीठ पर अष्टमी की शक्ति का अनुभव करें
चैत्र नवरात्रि हिंदू चंद्र वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है – नौ रातों का यह समय शक्ति के विभिन्न रूपों की पूजा के लिए समर्पित होता है। इनमें अष्टमी को सबसे शुभ माना जाता है, क्योंकि इस दिन विशेष आध्यात्मिक और भौतिक आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। खासकर जब यह अष्टमी काशी (वाराणसी) के विशालाक्षी मंदिर में मनाई जाती है, तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है और काशी का एकमात्र शक्तिपीठ माना जाता है। मान्यता है कि देवी सती के कान की बालियाँ इसी स्थान पर गिरी थीं, जिससे यह स्थान दिव्य ऊर्जा से भर गया। विशालाक्षी गौरी मंदिर, जिसे विशालाक्षी अम्मन कोविल भी कहा जाता है, देवी विशालाक्षी को समर्पित है, जो माता पार्वती का एक विशेष रूप और भगवान काशी विश्वनाथ की शाश्वत पत्नी हैं। देवी भागवत पुराण के अनुसार, माँ विशालाक्षी नवगौरी स्वरूपों में पाँचवीं हैं। कहा जाता है कि हर रात भगवान विश्वनाथ स्वयं माँ के पास विश्राम करने आते हैं, जिससे यह मंदिर एक पवित्र और दिव्य संगम का प्रतीक बन जाता है।
🔹 इस शक्तिपीठ को मदुरै और कांचीपुरम के पवित्र मंदिरों से क्या जोड़ता है?
काशी की विशालाक्षी, कांचीपुरम की कामाक्षी और मदुरै की मीनाक्षी – ये तीनों मिलकर त्रि-शक्ति त्रिवेणी का निर्माण करती हैं, जो पृथ्वी पर भगवती के तीन सर्वोच्च निवास माने जाते हैं। विशालाक्षी मंदिर में एक दुर्लभ और शक्तिशाली उपस्थिति श्री यंत्र की है, जिसकी पूजा माँ विशालाक्षी के साथ की जाती है। श्री यंत्र दिव्य ऊर्जा और समृद्धि का परम प्रतीक है, जो इस मंदिर को प्रचुरता को आकर्षित करने के लिए एक विशिष्ट स्थान बनाता है। जो भक्त धन, सफलता और तृप्ति की प्राप्ति चाहते हैं, वे इस मंदिर में माँ विशालाक्षी और पवित्र श्री यंत्र की पूजा करते हैं। इसलिए, इस दिव्य अष्टमी पर, इस शक्तिशाली मंदिर में श्री यंत्र कुमकुम अभिषेक, कनकधारा स्तोत्र पाठ और यज्ञ आयोजित किए जाएंगे। यह दिव्य अनुष्ठान अनंत प्रचुरता, समृद्धि और शुभता को आकर्षित करने के लिए जाना जाता है।
श्री यंत्र ब्रह्मांडीय धन ऊर्जा को जागृत करता है
आदि शंकराचार्य द्वारा रचित कनकधारा स्तोत्र दरिद्रता को दूर करता है और कृपा लाता है।
श्री मंदिर के माध्यम से इस पवित्र पूजा में शामिल हों और इस नवरात्रि में माँ विशालाक्षी का आशीर्वाद प्राप्त करें।