सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। यह समय पूर्वजों की आत्माओं की शांति के लिए किए जाने वाले सभी अनुष्ठानों के लिए सबसे शुभ माना गया है। शास्त्रों की मानें तो पितृ पक्ष की अवधि के दौरान हमारे पूर्वज पितृ लोक से धरती पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से खुश होकर आशीर्वाद देते हैं। पितृ पक्ष के दौरान पड़ने वाली हर तिथि का अपना अलग विशेष महत्व है, जिसमें से एक है एकादशी तिथि। इसे श्राद्ध एकादशी भी कहते हैं। इस तिथि पर उन पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं, जिनकी मृत्यु किसी भी मास की एकादशी तिथि पर हुई हो। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, यदि पितरों का ठीक प्रकार से श्राद्ध न किया जाए तो उनके वंशजों को पितृ दोष का सामना करना पड़ सकता है। पितृदोष के कारण जीवन में आर्थिक हानि, पारिवारिक विवाद जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध एकादशी तिथि पर पितृ दोष शांति महापूजा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
वहीं अगर यह श्राद्ध कर्म किसी धार्मिक स्थान पर किया जाए तो इसका महत्व अत्यधिक हो जाता है। हिंदू संस्कारों में पंचतीर्थ वेदी में धर्मारण्य वेदी की गणना की जाती है इसलिए यहां पितृ के निमित्त श्राद्ध करने का अधिक महत्व है। इसलिए पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध एकादशी तिथि पर गया के धर्मारण्य वेदी पर पितृ दोष शांति महापूजा का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर द्वारा इस अनुष्ठान में भाग लें और अपने पूर्वजों का आशीष पाएं। इसके अलावा, पितृपक्ष में पूर्वजों के लिए दान पुण्य करने का भी विधान है। मान्यता है कि इस समय दान करने से दोगुने फल की प्राप्ति होती है, जिनमें पितृ पक्ष विशेष पंच भोग, दीप दान भी शामिल है। इसलिए इस पूजा के साथ अतिरिक्त विकल्प के रूप में दिए गए जैसे पंच भोग, दीप दान एवं गंगा आरती का चुनाव करना आपके लिए फलदायी हो सकता है। इसलिए इस पूजा में इन विकल्पों को चुनकर अपनी पूजा को और भी अधिक प्रभावशाली बनाएं।