🔥 कभी-कभी जीवन की कठिनाइयां बाहर से नहीं आतीं, बल्कि हमारे मन के भीतर की अशांति और ग्रहों का असंतुलन ही इन्हें बढ़ा देता है। जब चिंता मन को घेर लेती है तो उसका असर हमारे सुख-चैन, फैसलों और परिवार की शांति तक पहुंचता है। वैदिक ज्ञान के अनुसार, ऐसी मानसिक और भावनात्मक अस्थिरता अक्सर एक विशेष योग के कारण होती है, जिसे विष योग कहा गया है। यह योग तब बनता है जब चंद्र देव (मन और भावनाओं के स्वामी) और शनिदेव (कर्म और न्याय के देवता) की ऊर्जा आपस में टकराती है। इस शनिवार को, जब चंद्रमा का रोहिणी नक्षत्र और शनिदेव का दिन साथ आ रहा है, तब यह प्रभाव और भी प्रबल हो सकता है। ऐसे समय में केवल एक सशक्त और सीधा उपाय (निवारण) ही संतुलन ला सकता है।
🔥 शास्त्रों में एक दिव्य कथा मिलती है, जब पूरे ब्रह्मांड को विनाश का खतरा था। समुद्र मंथन के समय भयंकर हलाहल विष निकला, जो संपूर्ण सृष्टि को नष्ट कर सकता था। तब करुणामय भगवान शिव ने सबको बचाने के लिए स्वयं वह विष पी लिया और अपने कंठ में रोक लिया। इसी कारण वे नीलकंठ कहलाए। इस बलिदान ने उन्हें सृष्टि के परम चिकित्सक और हर प्रकार के 'विष' को हरने वाले निवारक के रूप में स्थापित कर दिया। इसलिए, इस आराधना में महामृत्युंजय हवन की शक्ति भी शामिल है, जो भक्तों को भावनात्मकत रूप से स्थिरता का आशीष दे सकती है।
🔥 चंद्र-शनि विष योग निवारण पूजा एक गहन और बहुस्तरीय उपाय है। इसमें विद्वान पुरोहितों द्वारा सबसे पहले 10,000 बार चंद्र मूल मंत्र जप किया जाएगा, जिससे मन को स्थिरता और शांति की दिशा मिलती है। इसके बाद 23,000 बार शनि मूल मंत्र जप किया जाएगा, ताकि शनिदेव की कठोर ऊर्जा शांत हो और विष योग अपना असर न दिखा पाए। इसी के साथ भगवान शिव को समर्पित महामृत्युंजय हवन की आहुतियां महादेव की उपचार शक्ति को आमंत्रित करती हैं, जिससे ग्रहों का 'विष' शांत हो जाता है और भक्तों को मानसिक शांति, स्थिरता और संरक्षण की सही दिशा मिलती है।