सनातन धर्म में दर्श अमावस्या का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अमावस्या के दिन नकारात्मक ऊर्जाएं अपने चरम पर होती हैं। यही कारण है कि इस दिन देवी देवताओं के उग्र रूप की पूजा की जाती है। इसलिए इस शुभ दिन पर योगमाया कालिका पूजन अत्यंत फलदायी माना गया है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवी योगमाया कालिका, महाकाली का वह स्वरूप हैं, जो श्री दुर्गा सप्तशती और पुराणों में अत्यंत शक्तिशाली बताया गया है। यह देवी का वह रूप है, जो न केवल संसार की रचना और पालन करती हैं, बल्कि ब्रह्मांड की तमाम नकारात्मक शक्तियों का नाश भी करती हैं। ये महाकाली का वो स्वरुप हैं जिनकी दश भुजाएं और दश पैर हैं अर्थात् महाकाली ही महामाया के रुप में विष्णु को विमोहित यानी मोह से विमुक्त करती हैं और विष्णु को निद्रा में सुला कर खुद संसार का पालन कार्य करती हैं। देवी के इस स्वरूप का वर्णन महाभारत और श्रीमद्भागवत में भी आता है, जहाँ वे श्रीकृष्ण की बहन के रूप में कंस को श्राप देकर उसकी मृत्यु का माध्यम बनती हैं।
इसके अलावा द्वापर युग में द्रौपदी को भी माध्यम बनाकर महाकाली प्रगट होती हैं और कौरवों के वध का माध्यम बनती हैं। ये विष्णु की परा और अपरा दोनों ही शक्ति मानी गई हैं। विष्णु इनकी शक्ति के बिना उसी तरह से निष्क्रिय हो जाते हैं जैसे शिव महाकाली की शक्ति के बिना शव हो जाते हैं। इसलिए अमावस्या के शुभ दिन पर नकारात्मक ऊर्जाओं और शत्रुओं से सुरक्षा के लिए शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर में योगमाया कालिका पूजन, 11 दीप दान के साथ महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। वहीं इस दिन दीप दान का भी अत्यंत महत्व है मान्यता है कि इस दिन देवी योगमाया कालिका पूजा के साथ दीप दान करने से जीवन में प्रकाश, शांति और समृद्धि आती है। श्री मंदिर द्वारा इस पूजा में भाग लें और देवी से नकारात्मक ऊर्जाओं और शत्रुओं से सुरक्षा का आशीष पाएं।