कभी–कभी जीवन में ऐसा समय आता है जब सब कुछ सही करते हुए भी कुछ आगे बढ़ता हुआ दिखाई नहीं देता। कोई कानूनी मामला जो लगातार खिंचता जा रहा है और उसका समाधान दिखाई नहीं देता। एक परीक्षा जो भविष्य तय करती है लेकिन दिल में लगातार डर भर देती है या कोई प्रिय लक्ष्य जो बेहद करीब लगकर भी हर बार हाथ से फिसल जाता है। ऐसी बार-बार आने वाली रुकावटें धीरे-धीरे मन को थका देती हैं, आत्मविश्वास को कमजोर कर देती हैं, और भीतर एक सवाल जगाती हैं: “आखिर ऐसा मेरे साथ ही क्यों हो रहा है?”
हमारे शास्त्र बताते हैं कि ऐसी लगातार बनी रहने वाली बाधाएँ हमेशा बाहरी नहीं होतीं। कई बार अदृश्य नकारात्मक ऊर्जा, भीतर का भय, ईर्ष्या या विरोधी ताकतें हमारे मार्ग में हस्तक्षेप करने लगती हैं। जब जीवन हर दिन एक युद्ध जैसा महसूस होने लगे, तब भक्त माँ भद्रकाली की शरण में आते हैंजो अ पनी करुणा और प्रचंड शक्ति से भय को नष्ट करती हैं, बड़ी बाधाओं को तोड़ती हैं और खोई हुई शक्ति को वापस देती हैं। उनकी कृपा से व्यक्ति साहस, सुरक्षा और वह स्पष्टता प्राप्त करता है जो असंभव लगने वाली स्थितियों को भी बदल देती है।
🐎 पांडवों की भक्ति से जुड़े टेराकोटा (मिट्टी के) घोड़े की पावन कथा-
कुरुक्षेत्र की पवित्र भूमि से पांडवों की कथा गहराई से जुड़ी है। महाभारत युद्ध से पहले यह माना जाता है कि पांडव भाई माँ भद्रकाली के शक्तिपीठ पहुँचे थे। वनवास के वर्षों में वे शक्ति, सुरक्षा और सहयोगियों सबसे वंचित थे। हर कदम पर खतरा था, दुश्मन छिपे हुए थे, और साहस भी हर दिन परखा जाता था। ऐसी ही एक घड़ी में, जब कोई रास्ता नहीं दिखाई देता था, उन्होंने हथियारों नहीं, बल्कि श्रद्धा का सहारा लिया।
धन न होने पर उन्होंने पवित्र मिट्टी से छोटे-छोटे घोड़े बनाए और माँ भद्रकाली के चरणों में अर्पित किए। घोड़ा गति, विजय और रुका हुआ भाग्य आगे बढ़ने का प्रतीक माना जाता है। विश्वास है कि इस सरल टेराकोटा अर्पण ने उन्हें दिव्य संरक्षण दिया, अदृश्य बाधाएँ हटाईं और उनके मार्ग की रुकावटें टूटने लगीं। इसके बाद धीरे-धीरे उनके भाग्य की दिशा बदली मित्र लौटे, शक्ति बढ़ी और कुरुक्षेत्र का मार्ग खुला।
आज भी भक्त उसी भावना से टेराकोटा घोड़े अर्पित करते हैं। यह मन्नत का प्रतीक है। एक विनम्र प्रार्थना कि जीवन की लड़ाई में माँ भद्रकाली स्वयं आपका मार्गदर्शन करें। यह अर्पण आपके संघर्षों को उनके चरणों में समर्पित करता है और “आपकी विजय के वाहन” को ईश्वरीय संरक्षण में सौंप देता है। माना जाता है कि यही शक्ति आज भी जागृत होती है और भक्तों के जीवन की अटकी हुई राहें खुलने लगती हैं।
श्री मंदिर के इस विशेष अनुष्ठान के माध्यम से भक्त दिव्य सुरक्षा, साहस, विजय और गहरी शांति का आशीर्वाद प्राप्त करने का संकल्प लेते हैं ताकि जीवन की कठिन से कठिन परीक्षाओं का सामना नई शक्ति और विश्वास के साथ कर सकें।