🌑मानसिक शांति और बेहतर निर्णय लेने का आशीर्वाद पाने के लिए ख़ास नक्षत्र में राहु-केतु पूजा
🛕 हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, राहु और केतु स्वर्भानु नाम के राक्षस के शरीर से पैदा हुए दो प्राणी हैं। स्वर्भानु के सिर को राहु और धड़ को केतु के नाम से जाना गया है। शास्त्रों के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु-केतु की दशा चल रही हो तो इससे प्रयासों में असफलता, पारिवारिक कलह, बुरी आदतों की लत, आर्थिक तंगी और निर्णय लेने में कठिनाई जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं। एकादशी और आर्द्रा नक्षत्र का संयोग, इन ग्रहों की साधना के लिए बेहद शुभ माना गया है।
🛕 पुराणों में भगवान शिव को राहु और केतु का देवता माना जाता है और मान्यता है कि उनकी पूजा करने से इन ग्रहों के अशुभ प्रभावों में कमी आती है। जब यह आराधना एकादशी के दिन आर्द्रा नक्षत्र में संपन्न होती है तो इसके फल कई गुना प्रभावी माने गए हैं। राहु-केतु पीड़ा शांति पूजा के साथ शिव रुद्राभिषेक करना बहुत लाभकारी माना जाता है, क्योंकि महादेव की आराधना के माध्यमों में रुद्राभिषेक को बेहद अहम और फलदायी माना जाता है। रुद्राभिषेक में जल, दूध, दही, शहद, गंगाजल और घी जैसे द्रव्यों से शिव जी का अभिषेक किया जाता है और उनसे सभी दुखों, संकटों और बाधाओं को हरने की कामना की जाती है।
🛕 शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव की पूजा करने से ग्रह दोषों से राहत की दिशा मिल सकती है। इसलिए, उत्तराखंड के राहु पैठाणी मंदिर में राहु-केतु पीड़ा शांति पूजा और शिव रुद्राभिषेक का आयोजन किया जाएगा। यह मंदिर देश के उन चुनिंदा राहु मंदिरों में है, जहां भगवान शिव के साथ राहु की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में पूजा करने से भक्तों को राहु देव के साथ भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। इसलिए, आर्द्रा नक्षत्र के शुभ संयोग में यहां राहु-केतु पीड़ा शांति पूजा और शिव रुद्राभिषेक का दुर्लभ अवसर है, जिसे हाथ से न जाने दें!
भगवान शिव का आशीर्वाद पाने और अपनी कुंडली में राहु और केतु के बुरे प्रभावों को कम करने के लिए श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें