सनातन धर्म के ग्रंथों, विशेषकर गरुड़ पुराण में यह बताया गया है कि जब किसी भी मनुष्य की असमय मृत्यु हो जाती है या मृत्यु के बाद उसके संस्कार पूरे नहीं हो पाते, तो वह आत्मा शांति प्राप्त नहीं कर पाती। ऐसी आत्माओं की बेचैनी और अधूरी ऊर्जा समय के साथ वंशजों पर असर डाल सकती है। इस प्रभाव को पितृ दोष कहा जाता है। पितृ दोष होने पर परिवार और जीवन में कई प्रकार की कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं। अक्सर देखा जाता है कि परिवार में आपसी कलह और अशांति बनी रहती है, विवाह में देरी और संतान के स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियाँ बार-बार सामने आती हैं और आर्थिक स्थिरता नहीं बन पाती। ये सभी स्थितियाँ पितृ दोष के लक्षण मानी जाती हैं।
शास्त्रों में ऐसी परिस्थितियों से राहत पाने के लिए विशेष पितृ अनुष्ठानों का उल्लेख किया गया है। इन अनुष्ठानों का उद्देश्य अशांत आत्माओं को संतुलन प्रदान करना और वंशजों के जीवन से बाधाओं को दूर करना है। श्री मंदिर द्वारा इन अनुष्ठानों का आयोजन गोकर्ण क्षेत्र में किया जा रहा है। गोकर्ण को दक्षिण काशी कहा जाता है और यहाँ किए गए अनुष्ठानों को आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत शक्तिशाली माना गया है।
मुख्य अनुष्ठान इस प्रकार हैं –
🙏 नारायण बलि पूजा – यह अनुष्ठान उन आत्माओं को राहत देने के लिए किया जाता है, जो असमय मृत्यु के कारण अशांत बनी रहती हैं।
🙏 त्रिपिंडी श्राद्ध – यह उन पूर्वजों के लिए किया जाता है जिनके संस्कार अधूरे रह गए हों या जिनका विधिवत स्मरण न हो पाया हो। यह उन्हें संतुलन और शांति प्रदान करता है।
🙏 पितृ दोष शांति पूजा – इस पूजा के माध्यम से पितरों से जुड़े कर्मिक अवरोधों को शांत किया जाता है, जिससे परिवारिक जीवन में सहजता आती है।
गोकर्ण में किए गए ये अनुष्ठान केवल परंपरा का पालन भर नहीं हैं, बल्कि यह पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने और वंशजों के जीवन में संतुलन लाने का माध्यम हैं। इनसे परिवार को राहत मिलती है और आगे का जीवन अधिक सहज हो पाता है।