क्या आप जानते हैं - गया स्थित पवित्र धर्मारण्य तीर्थ पर पिंडदान और श्राद्ध करने से आपके परिवार की 20 पीढ़ियों की आत्माओं को शांति मिल सकती है?
श्राद्ध पक्ष, जिसे पितृ पक्ष भी कहा जाता है, सनातन धर्म में अपने पितरों को तृप्त करने और उन्हें स्मरण करने का विशेष काल है। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान हमारे पितृ पितृलोक से धरती पर आते हैं और श्रद्धा भाव से किए गए तर्पण व श्राद्ध से प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इसी कारण इस समय विशेष अनुष्ठानों जैसे – त्रिपिंडी श्राद्ध, तिल तर्पण और पिंड दान का विधान है, जिनका उद्देश्य पितरों की आत्मा की शांति और मुक्ति की प्रार्थना करना है। वेद, उपनिषद और पुराणों में इसका महत्व विस्तार से वर्णित है। गरुड़ पुराण के अनुसार, इन अनुष्ठानों से व्यक्ति पितृ ऋण से मुक्त होता है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है।
सभी पवित्र स्थलों में गया तीर्थ को पितृ पूजन की परंपरा में विशेष स्थान प्राप्त है। इसे भारत के प्रमुख मोक्ष तीर्थों में गिना जाता है। यहाँ पिंड दान और तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में उल्लेख है कि ब्रह्माजी ने व्यासजी से कहा था कि गया नामक असुर ने तपस्या कर देवताओं और मनुष्यों को कष्ट दिया। तब देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। भगवान विष्णु ने गदाधारण कर उसे परास्त किया और उसका शरीर गया क्षेत्र में पवित्र तीर्थ बना दिया। यहाँ हवन, श्राद्ध और पिंड दान करने से स्वर्ग और ब्रह्मलोक की प्राप्ति संभव मानी गई। गरुड़ पुराण में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि गया के धर्मारण्य वेदी पर पिंड दान और श्राद्ध करने से 20 पीढ़ियों तक के पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं।
🙏 श्री मंदिर के माध्यम से आप भी गया स्थित धर्मारण्य वेदी पर महा त्रिपिंडी श्राद्ध में सम्मिलित होकर इस पवित्र अनुष्ठान का हिस्सा बन सकते हैं। पंचतीर्थ वेदियों में गिनी जाने वाली इस वेदी पर किया गया श्राद्ध पितृ दोष शांति और पितरों की तृप्ति के लिए विशेष माना जाता है।