🪐 सनातन परंपरा में शनि देव को कर्मों का सूक्ष्म निरीक्षक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति के पिछले कर्मों के आधार पर जीवन में कई प्रकार की परिस्थितियाँ बनती हैं। जब शनि दोष, साढ़े साती या ढैय्या सक्रिय होती है, तो इसका असर जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में दिखाई देने लगता है। कई लोग इस समय स्वास्थ्य, करियर, आर्थिक स्थिति, रिश्तों, पारिवारिक माहौल और मानसिक शांति में उतार-चढ़ाव महसूस करते हैं। अक्सर कामों में देरी होने, दबाव बढ़ने, बार-बार रुकावटों का सामना करने और मन में चिंता जैसी स्थितियाँ देखने को मिलती हैं। वैदिक ज्योतिष में शनि को अनुशासन, संयम और गहरे जीवन-सीखों का प्रतिनिधि माना गया है, इसलिए यह अवधि कई बार इंसान को धैर्य और स्थिरता की ओर ले जाने वाली मानी जाती है।
🪐 इन पारंपरिक मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए श्री मंदिर द्वारा दिसंबर 2025 के अंतिम तीन शनिवारों पर एक विशेष शनि महापूजा चक्र का आयोजन किया जा रहा है। इसका उद्देश्य जीवन के विभिन्न पहलुओं को धीरे-धीरे संतुलित करने की परंपरागत भावना के साथ पूजा सम्पन्न करना है। यह अनुष्ठान 13, 20 और 27 दिसंबर 2025 को किया जाएगा, जिसे आने वाले वर्ष से पहले एक संपूर्ण शनि साधना चक्र के रूप में देखा जाता है।
✨ 13 दिसंबर को करियर और आर्थिक स्थिरता से जुड़े विषयों के अनुरूप पूजा की जाती है।
✨20 दिसंबर को रिश्तों, प्रेम और विवाह से संबंधित सामंजस्य के भाव पर ध्यान दिया जाता है।
✨ 27 दिसंबर को स्वास्थ्य और शारीरिक स्थिरता की पारंपरिक भावना के अनुसार पूजा सम्पन्न होती है।
🪐 तीनों शनिवारों में तिल-तेल अभिषेक और शनि शांति मंत्रोच्चारण एक क्रमबद्ध साधना के तौर पर किया जाता है। तिल का तेल और काले तिल जैसे द्रव्यों का उपयोग पुराने समय से शनि उपासना में महत्वपूर्ण माना गया है। इस साधना का उद्देश्य मन के दबाव को हल्का करना, रुकावटों वाली ऊर्जा को शांत करना और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में स्पष्टता का अनुभव कराने की पारंपरिक मान्यता से जुड़ा है। कई लोग इसे वर्ष की समाप्ति से पहले एक आंतरिक सफाई या मानसिक व्यवस्थितता के रूप में भी देखते हैं।
🪐 परंपरा में शनिवार को शनि देव की उपासना का प्रमुख दिन माना गया है। शास्त्रों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि यदि शनिवारी पूजा क्रम में की जाए, तो समय के साथ मन में स्थिरता, स्पष्टता और आत्म-अनुशासन का भाव मजबूत होता है। इसी भावना को आधार बनाकर यह तीन-सप्ताहिक अनुष्ठान उज्जैन के प्रसिद्ध श्री नवग्रह शनि मंदिर में किया जा रहा है, जो तिल-तेल अभिषेक और शनि शांति साधनाओं के लिए प्रसिद्ध माना जाता है।
🪐 भक्त इस अनुष्ठान में सम्मिलित होकर वर्षांत के समय अपने जीवन में मानसिक स्पष्टता, संतुलन और नई शुरुआत की भावना को अनुभव करने का एक आध्यात्मिक अवसर पा सकते हैं।