सनातन धर्म में अमावस्या को अत्यंत शुभ और पुण्यदायी तिथि माना गया है। इस दिन देवताओं और पितरों की कृपा एक साथ प्राप्त करने का अवसर मिलता है। यदि आपके जीवन में बिना कारण कार्य अटक जाते हैं, विवाह या संतान से संबंधित बाधाएं बनी रहती हैं, या परिवार में कलह और मानसिक अशांति का वातावरण रहता है, तो यह पितृ दोष का संकेत हो सकता है। शास्त्रों में वर्णन है कि जब पितरों की आत्मा तृप्त नहीं होती या उनके लिए उचित विधि से पिंडदान नहीं किया जाता, तो उनका असंतोष आने वाली पीढ़ियों पर प्रभाव डालता है। इसके परिणामस्वरूप जीवन में आर्थिक अस्थिरता, रोग और पारिवारिक विघटन जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
अमावस्या पर किया गया पिंडदान विशेष रूप से फलदायी माना गया है, क्योंकि इस दिन आत्मीय ऊर्जा प्रबल रहती है और पितरों तक हमारी श्रद्धा सबसे अधिक प्रभाव के साथ पहुँचती है। इसी कारण श्री मंदिर के माध्यम से इस अमावस्या पर त्रि-तीर्थ पितृ पिंडदान अनुष्ठान का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें देश के 3 प्रमुख मोक्षदायी तीर्थों पर एक साथ पिंडदान कराया जाएगा।
🔹 अस्सी घाट, काशी – मोक्ष की नगरी काशी में पितृ शांति के लिए पिंडदान करना अत्यंत शुभ माना गया है। यहां किया गया पिंडदान पूर्वजों को शीघ्र शांति देता है और वंश परंपरा को सुदृढ़ करता है।
🔹 गंगा घाट, हरिद्वार – हरिद्वार के गंगा तट पर किया गया पिंडदान आत्मा को मोक्ष की ओर अग्रसर करता है और परिवार पर पितृ कृपा का आशीर्वाद लाता है।
🔹 धर्मारण्य वेदी, गया – गया श्राद्ध का महत्व शास्त्रों में सर्वोच्च बताया गया है। यहां किए गए पिंडदान से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और संतान को पितृ आशीर्वाद मिलता है।
अमावस्या के इस पावन अवसर पर पिंडदान करके आप अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर सकते हैं। साथ ही अपने जीवन में सौभाग्य, स्थिरता और सकारात्मक ऊर्जा का स्वागत कर सकते हैं।
श्री मंदिर के माध्यम से इस त्रि-तीर्थ पितृ पिंडदान अनुष्ठान में सम्मिलित होकर आप अपने वंश के लिए दीर्घकालिक पितृ कृपा प्राप्त कर सकते हैं। 🙏