🕉️ क्या हो अगर आप सावन का समापन एक ही दिन में, एक नहीं बल्कि तीन पवित्र ज्योतिर्लिंगों पर पूजा करके कर सकें?
सावन का महीना हिंदू पंचांग में सबसे पवित्र और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण समय माना जाता है, क्योंकि इस दौरान भगवान शिव अपने भक्तों की प्रार्थनाएं जल्दी स्वीकार करते हैं। जैसे-जैसे सावन का आखिरी दिन नज़दीक आता है, यह भगवान शिव से गहराई से जुड़ने और आने वाले साल के लिए उनका आशीर्वाद पाने का एक अनमोल मौका बन जाता है। यह दिन ईश्वर की कृपा पाने, परेशानियों, स्वास्थ्य समस्याओं और जीवन की अन्य चुनौतियों से राहत के लिए बहुत खास माना जाता है। इसी शुभ अवसर पर, श्री मंदिर तीन पवित्र ज्योतिर्लिंगों त्र्यंबकेश्वर, ओंकारेश्वर और घृष्णेश्वर में विशेष रुद्राभिषेक अनुष्ठान का आयोजन कर रहा है। ये सभी मंदिर भगवान शिव के सबसे पूजनीय स्थानों में गिने जाते हैं और माना जाता है कि सावन के अंतिम दिन यहाँ की गई पूजा से विशेष आध्यात्मिक लाभ और ईश्वरीय सुरक्षा प्राप्त होती है।
🔱 रुद्राभिषेक - तीन शक्तिशाली ज्योतिर्लिंगों पर शिव का प्रिय अनुष्ठान
भगवान शिव को प्रसन्न करने के सबसे प्रभावशाली तरीकों में से एक है रुद्राभिषेक। इस अनुष्ठान में मंत्रों के साथ शिवलिंग पर जल, दूध, शहद और बेलपत्र चढ़ाया जाता है, जिससे भक्त को गहरा आध्यात्मिक अनुभव और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। यह पूजा मन और दिल की उलझनों को दूर करने में मदद करती है और जीवन में शांति और संतुलन लाती है। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, जो पवित्र गोदावरी नदी के पास स्थित है, ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों की शक्ति का केंद्र माना जाता है। यह स्थान मनोकामनाएं पूरी करने और पुराने कर्मों की बाधाओं को दूर करने के लिए पूजनीय है।
ओंकारेश्वर, जो नर्मदा नदी के मंधाता द्वीप पर स्थित है, वह स्थान है जहाँ नर्मदा ‘ॐ’ के आकार में बहती है। यह ज्योतिर्लिंग स्वयंभू माने जाते हैं। स्कंद पुराण, शिव पुराण और वायु पुराण जैसे धर्मग्रंथ इस जगह की शक्ति का उल्लेख करते हैं। मान्यता है कि शिव और पार्वती हर रात यहाँ आते हैं और पासों का खेल खेलते हैं, जिससे यहाँ की पूजा और भी प्रभावशाली मानी जाती है। घृष्णेश्वर, जो देवगिरि के पास स्थित है, बारहवाँ और अंतिम ज्योतिर्लिंग है। यह स्थान घुश्मा नामक महिला की सच्ची भक्ति का प्रतीक है। बिना संतान के भी उन्होंने रोज़ 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर शिव की पूजा की। जब उनकी बहन ने उनके पुत्र की हत्या की, तब भी घुश्मा ने अपनी श्रद्धा नहीं छोड़ी। उनकी भक्ति से खुश होकर, भगवान शिव ने उनके पुत्र को जीवनदान दिया और खुद को घुश्मेश्वर के रूप में स्थापित किया।
इस साल में एक बार मिलने वाले इस खास मौके को न चूकें। सावन के आखिरी दिन भगवान शिव से जुड़ें, उनका आशीर्वाद पाएं और अपने जीवन में उनकी कृपा व सुरक्षा का अनुभव करें।