🔱 माँ काली जयंती पर एक नहीं, 4 महाविद्याओं से पाएं थकान, उलझन और जीवन की परेशानियों से राहत का मार्ग✨
आज का समय भावनात्मक थकान, रिश्तों की उलझनों और आत्मविश्वास की कमी से भरा हुआ है। कई बार जीवन में सब कुछ होते हुए भी भीतर एक खालीपन और असंतुलन महसूस होता है। ऐसे समय में मन को एक गहरे संबल की आवश्यकता होती है ऐसी शक्ति जो अंदर से स्थिरता, स्पष्टता और आत्मविश्वास प्रदान करे। काली जयंती ऐसा ही एक विशेष अवसर माना जाता है। यह दिन माँ काली की शक्ति, करुणा और रक्षा भावना को समर्पित होता है। माना जाता है कि इस दिन की गई साधना से मन का भय, भीतर की बेचैनी और नकारात्मकता धीरे-धीरे कम होती है, जिससे व्यक्ति मानसिक रूप से अधिक स्थिर और केंद्रित हो जाता है।
काली जयंती भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। माँ काली दस महाविद्याओं में पहली हैं और भगवान महाकाल शिव की शक्ति स्वरूपा मानी जाती हैं। देवी भागवत पुराण और ब्रह्मनील तंत्र के अनुसार, उनके दो मुख्य रूप बताए गए हैं काले वर्ण की ‘दक्षिणा’ और लाल वर्ण की ‘सुंदरी’। उनके गहरे काले रंग के कारण ही उन्हें ‘काली’ कहा गया है। इस वर्ष काली जयंती का योग शुक्रवार को बन रहा है, जो देवी साधना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन केवल माँ काली ही नहीं, बल्कि माँ तारा, त्रिपुर सुंदरी, भैरवी और ललिता सहित चार महाविद्याओं की साधना भी विशेष फलदायी मानी जाती है। यह दिन साधकों को आंतरिक शक्ति, भावनात्मक संतुलन और आत्मिक शांति प्रदान करने वाला माना जाता है।
🔹 माँ काली – भय और संकटों से रक्षा करने वाली, जीवन की रक्षक और जाग्रत चेतना की देवी।
🔹 माँ भैरवी – भीतर छिपे डर, क्रोध और असंतुलन को शुद्ध करके आत्मबल प्रदान करती हैं।
🔹 माँ तारा – करुणा और मार्गदर्शन की शक्ति, जो बेचैनी को शांति में बदलती हैं।
🔹 माँ त्रिपुर सुंदरी – संतुलन, सहजता और स्पष्टता की देवी, जो जीवन में दिशा और सौंदर्य लाती हैं।
इन शक्ति रुपों की साधना हेतु इस दिन 3 प्रसिद्ध शक्तिपीठों में विशेष यज्ञ और पूजन का आयोजन हो रहा है:
🔸 शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर – कालीघाट मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि यहाँ माता सती के दाहिने पैर की उंगली गिरी थी। यहां माँ काली और माँ भैरवी की पूजा की जाएगी।
🔸 श्री तारापीठ मंदिर –तारापीठ मंदिर तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र और शक्तिपीठों में एक पवित्र स्थान है। मान्यता है कि यहाँ माता सती की आंख की पुतली गिरी थी। यहां माँ तारा की पूजा की जाएगी।
🔸 माँ ललिता देवी मंदिर – त्रिवेणी संगम के पास स्थित इस मंदिर के संदर्भ में यह मान्यता है कि यहाँ देवी सती की हाथ की उंगली गिरी थी। यहां माँ त्रिपुर सुंदरी की पूजा की जाएगी।
आप भी श्री मंदिर के माध्यम से इस माँ काली जयंती पर माँ के इन रूपों की साधना द्वारा अपने भीतर की शक्ति को फिर से जगाएं क्योंकि जब मन डगमगाता है, तब माँ ही संभालती हैं।