🌸 विवाह पंचमी भगवान श्रीराम और माता सीता के पवित्र विवाह का उत्सव है। यह दिन प्रेम, वफादारी और धार्मिक आचरण का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस शुभ तिथि पर की गई पूजा से वैवाहिक जीवन में आपसी समझ, सम्मान और स्नेह बढ़ता है। यह दिन जीवनसाथियों को एक-दूसरे के प्रति समर्पण और सहयोग का भाव सिखाता है।
🌸 उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर अत्यंत पवित्र स्थल माना गया है। मान्यता है कि यहीं सतयुग में भगवान शिव और माता पार्वती का दिव्य विवाह संपन्न हुआ था, जिसके साक्षी स्वयं भगवान विष्णु और अन्य देवता बने थे। इस विवाह के समय जो अग्नि प्रज्ज्वलित की गई थी, वह अग्निकुंड आज भी निरंतर जल रहा है। यह अग्नि पति-पत्नी के बीच अटूट विश्वास और निष्ठा की प्रतीक मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ पूजा करने से वैवाहिक जीवन में वही दिव्यता और स्थिरता आती है, जैसी शिव-पार्वती के संबंध में है।
🌸 इस अवसर पर आयोजित सीता–राम सौभाग्य स्थिति अनुष्ठान में वैदिक ब्राह्मण विवाह पंचमी कथा का पाठ करते हैं और त्रियुगीनारायण के अग्निकुंड में 108 पवित्र आहुतियां अर्पित की जाती हैं। इस अनुष्ठान में माता सीता की पूजा सुगंध, फूल और अक्षत (चावल) से की जाती है, जो पवित्रता और समर्पण का प्रतीक है। वहीं भगवान श्रीराम की आराधना तुलसी और चंदन से की जाती है, जिससे संबंधों में स्थिरता, आदर और प्रेम बना रहता है। ऐसा माना जाता है कि यह विधि अहंकार और मतभेद को दूर करती है तथा वैवाहिक जीवन में सौभाग्य और मधुरता लौटाती है।
🌸 श्री मंदिर के माध्यम से संपन्न होने वाली यह पवित्र पूजा सभी दंपत्तियों और पारिवारिक रिश्तों में प्रेम, विश्वास और साथ बने रहने का दिव्य आशीर्वाद प्रदान करती है। यह अनुष्ठान त्रियुगीनारायण में प्रज्ज्वलित शिव–पार्वती के अनंत विवाह अग्नि और विवाह पंचमी पर श्रीराम–सीता के दिव्य संगम से प्रेरणा लेकर संबंधों में स्थायी एकता और प्रेम का आशीर्वाद देता है।