✨ हर वर्ष मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिव्य दिन पर माता लक्ष्मी और भगवान नारायण के पवित्र विवाह का उत्सव मनाया जाता है, जो समृद्धि और सुरक्षा के शाश्वत मिलन का प्रतीक है। यह पर्व उन दिव्य शक्तियों के संतुलन का प्रतीक माना जाता है जो सृष्टि, समृद्धि और धर्म को प्रत्येक परिवार में बनाए रखती हैं।
✨ इस पावन अवसर पर माता लक्ष्मी और भगवान नारायण की विशेष पूजा की जाती है, जिन्हें धन, सद्गुण और ब्रह्मांडीय सामंजस्य का प्रतीक माना गया है। इस दिन भक्त लक्ष्मी-नारायण अष्टोत्तर शतनामावली का पाठ करते हैं, जिसमें उनके 108 दिव्य नामों का स्मरण किया जाता है। यह पाठ दांपत्य जीवन में प्रेम, समझ और स्थिरता बनाए रखने का साधन माना गया है।
✨ इस दिन श्री सूक्त का पाठ भी किया जाता है, जिसमें माता लक्ष्मी के सौंदर्य, कृपा और ऐश्वर्य का वर्णन मिलता है। श्री सूक्त हवन के दौरान पवित्र अग्नि में वेद मंत्रों के साथ आहुति दी जाती है, जिससे घर में आर्थिक वृद्धि, शांति और समृद्धि का वातावरण बनता है। इस अनुष्ठान के माध्यम से माता लक्ष्मी और भगवान नारायण की संयुक्त कृपा का आह्वान किया जाता है, जिससे दांपत्य और पारिवारिक जीवन में संतुलन बना रहता है।
✨ इसके साथ ही भगवान विष्णु के सहस्र नामों से युक्त विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ किया जाता है। माना जाता है कि इसके उच्चारण से नकारात्मकता और बाधाएं दूर होती हैं और दंपत्ति के बीच दिव्य एकता का वातावरण बनता है। इन पवित्र स्तोत्रों के प्रभाव से वैवाहिक जीवन में सुख, शांति और सौहार्द का संचार होता है।
✨ यह लक्ष्मी-नारायण विवाह पंचमी विशेष महापूजा उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर में आयोजित की जा रही है। कहा जाता है कि भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी ने अपने वनवास के समय इस पवित्र स्थान से होकर यात्रा की थी। कई मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में भगवान नारायण अपनी दिव्य संगिनी माता लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं और श्रद्धा से पूजा करने वाले भक्तों पर कृपा बरसाते हैं।
श्री मंदिर के माध्यम से इस पवित्र आयोजन में सहभागी होकर भक्त लक्ष्मी-नारायण की दिव्य कृपा का अनुभव कर सकते हैं।