क्या आपने कभी महसूस किया है कि हर प्रयास के बावजूद जीवन में कुछ न कुछ अटक सा जाता है? जैसे कोई अदृश्य रुकावट मनचाहे परिणाम के बीच दीवार बनकर खड़ी हो? ऐसे समय में माँ भद्रकाली की उपासना से मन को शक्ति और मार्ग को स्पष्टता मिलती है।
शास्त्रों के अनुसार शुक्रवार का दिन माँ भद्रकाली की पूजा के लिए बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन शक्तिपीठ श्री देवीकूप भद्रकाली, कुरुक्षेत्र में किया जाने वाला भद्रकाली स्तोत्र पाठ और काली सहस्रनाम पाठ विशेष रूप से फलदायी माना गया है। यह पूजा माँ से प्रार्थना का एक माध्यम है कि जीवन की बाधाएँ कम हों और प्रयत्नों में संतुलन और स्थिरता बनी रहे।
कुरुक्षेत्र का भद्रकाली मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि यहीं देवी सती का दाहिना टखना गिरा था, जिससे यह स्थान पवित्र ऊर्जा से संपन्न हुआ। इसका संबंध महाभारत काल से भी जुड़ा है। कहा जाता है कि युद्ध से पहले श्रीकृष्ण स्वयं पांडवों को यहाँ लाए और उन्होंने माँ भद्रकाली से धर्म और सत्य की रक्षा के लिए आशीर्वाद माँगा। तब से यह स्थान साहस और भक्ति का प्रतीक माना जाता है।
माँ भद्रकाली का स्वरूप शक्ति, संतुलन और दृढ़ता का प्रतीक है। जब उनके सहस्र नामों का पाठ किया जाता है, तो यह साधना मन को केंद्रित करने और नकारात्मक विचारों से दूरी बनाने में सहायक मानी जाती है। भक्त इस पाठ को अपनी श्रद्धा और जीवन के संकल्पों के साथ जोड़ते हैं। यह पूजा उन लोगों के लिए विशेष मानी जाती है जो जीवन में रुकावटों को कम करने और अपने प्रयासों में संतुलन लाने की भावना से माँ का स्मरण करते हैं।
शुक्रवार को किया गया यह अनुष्ठान भक्त के भीतर आत्मबल और निष्ठा की भावना को जागृत करने का अवसर प्रदान करता है। माँ भद्रकाली की उपासना केवल इच्छा पूर्ति के लिए नहीं, बल्कि स्वयं में स्थिरता और स्पष्टता लाने का मार्ग भी मानी जाती है।
श्री देवीकूप भद्रकाली शक्तिपीठ में यह पूजा श्रद्धा और भक्ति से की जाती है, जहाँ माँ सती की उपस्थिति और पांडवों की आस्था आज भी अनुभव की जा सकती है। इस पावन अवसर पर भद्रकाली स्तोत्र पाठ और काली सहस्रनाम पाठ में सम्मिलित होकर भक्त माँ से अपने जीवन में शक्ति, संयम और सद्भाव की प्रार्थना करते हैं।
🙏 श्री मंदिर के माध्यम से इस दिव्य पूजा में सम्मिलित होकर, जीवन की सभी इच्छाओं की पूर्ति और सभी बाधाओं से राहत के लिए माँ भद्रकाली से प्रार्थना करें।