सनातन धर्म में वैकुण्ठ चतुर्दशी का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन भगवान शिव और श्री हरि विष्णु की संयुक्त पूजा की जाती है। इस दिन को लेकर एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है, जिसके अनुसार, जब भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा से जागते हैं, तो वे भगवान शिव की आराधना करने के लिए काशी नगरी पधारते हैं। वहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने के बाद, वे संकल्प लेते हैं कि वे 1,000 स्वर्ण कमल के फूल भगवान शिव को अर्पित करेंगे। भगवान शिव उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक कमल का फूल छुपा देते हैं। जब भगवान विष्णु को एक फूल कम मिलता है, तो वे अपनी श्रद्धा और समर्पण दिखाने के लिए अपनी एक आंख को कमल के रूप में अर्पित करने का निश्चय कर लेते हैं। उनकी इस भावना को देख, भगवान शिव प्रकट होते हैं और उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं। भगवान विष्णु की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान करते हैं और आशीर्वाद देते हैं कि जो भी भक्त इस दिन श्री हरि विष्णु की पूजा करेगा, वह मृत्यु के बाद सीधे बैकुंठ धाम में प्रवेश पाएगा। यही कारण है कि भक्त इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों की पूजा करते हैं।
शास्त्रों में भगवान शिव और श्री हरि विष्णु को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र जाप और सुदर्शन हवन को लाभकारी बताया गया है। महामृत्युंजय मंत्र को "मृत्यु पर विजय का महामंत्र" कहा जाता है। इस मंत्र में इतनी शक्ति है कि इसके जाप करने वाले भक्त के मन से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है और उसे भगवान शिव की सुरक्षा प्राप्त होती है। वहीं सुर्दशन हवन एक पवित्र अग्नि अनुष्ठान है, जो भगवान विष्णु के रौद्र और रक्षक रूप सुदर्शन को समर्पित है। पौराणिक कथानुसार, भगवान विष्णु ने सुर्दशन चक्र का ही प्रयोग कर स्वरभानु को अमृत पान से रोका और देवताओं की रक्षा की थी। यदि यह अनुष्ठान किसी ज्योतिर्लिंग में किया जाए तो यह कई गुना अधिक फलदायी हो सकता है। इसलिए वैकुण्ठ चतुर्दशी के शुभ अवसर पर श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में 51,000 महामृत्युंजय मंत्र जाप और सुर्दशन हवन का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष अनुष्ठान में भाग लें।