सनातन धर्म में शनिवार का दिन विशेष रूप से शनिदेव को समर्पित माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि शनि का अस्थिर प्रभाव जीवन में कई तरह की कठिनाइयाँ ला सकता है, जैसे आर्थिक उलझन, मानसिक तनाव और पारिवारिक असंतुलन। ऐसे समय में केवल साधारण उपाय पर्याप्त नहीं होते; शनि के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए विशेष वैदिक अनुष्ठान अत्यंत आवश्यक माने जाते हैं। इसी दृष्टि से शनि त्रयोदशी-प्रदोष का दिन विशेष महत्व रखता है। त्रयोदशी का पावन दिन और प्रदोष का समय दोनों मिलकर शनिदेव की ऊर्जा को अधिक संवेदनशील बना देते हैं। मान्यता है कि इस अवसर पर की गई पूजा और साधना से शनि देव की कृपा अधिक तीव्र रूप से प्राप्त होती है, जिससे जीवन में स्थिरता, सफलता और मानसिक शांति का मार्ग खुलता है।
इस दिन तिल-तेल अभिषेक, शांति हवन और शनि बीज मंत्र का जाप बहुत प्रभावशाली माने जाते हैं। तिल-तेल से अभिषेक करने पर नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है, हवन से वातावरण और मन शुद्ध होते हैं, और मंत्र जाप से मन को शांति और जीवन में स्थिरता मिलती है। इन तीनों अनुष्ठानों से व्यक्ति के जीवन में सफलता, पारिवारिक सुख और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। इसी कारण इस शुभ अवसर पर उज्जैन के श्री नवग्रह मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जा रहा है। यह मंदिर शनि दोष, साढ़ेसाती और ढैय्या से राहत दिलाने के लिए प्रसिद्ध है। मान्यता है कि यहाँ की पूजा करने से शनि देव की कृपा मिलती है और जीवन के नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं।