उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की शक्ति से एकादशी देवी का जन्म हुआ था, जिन्होंने मुर नामक असुर का अंत किया था। इसलिए इस तिथि को सभी एकादशियों की जननी और पापों के नाश का प्रतीक माना जाता है। यह दिन मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करने के लिए बहुत महत्व रखता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से जीवन में रुके हुए काम आगे बढ़ते हैं और नकारात्मक ऊर्जा कम होती है। सनातन धर्म में उत्पन्ना एकादशी का संबंध भगवान विष्णु के साथ-साथ ग्रहों और उनके प्रभाव से भी माना जाता है।
कभी-कभी जब व्यक्ति के कर्म भारी हो जाते हैं, तब जीवन में रुकावटें, तनाव और परेशानियां बढ़ जाती हैं। ऐसे समय में भगवान शनि देव और भैरव बाबा की उपासना बहुत प्रभावी मानी जाती है। शनि देव न्याय के देवता हैं और व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं, वहीं भैरव बाबा अदृश्य बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करते हैं। उत्पन्ना एकादशी का यह दिन इन दोनों देवताओं की पूजा के लिए शुभ माना जाता है क्योंकि यह दिन संतुलन और शांति का प्रतीक है। जिन लोगों की कुंडली में शनि दोष होता है, उनके लिए यह दिन विशेष रूप से शुभ माना जाता है। जब शनि अशुभ स्थिति में होते हैं तो व्यक्ति मानसिक तनाव, काम में देरी और आर्थिक रुकावटों का सामना करता है।
इन प्रभावों को शांत करने के लिए शनि-भैरव संयुक्त रक्षा कवच पाठ एवं महायज्ञ का आयोजन किया गया है। इस विशेष पूजा में शनि देव की आराधना उज्जैन के हथला शनि मंदिर में होगी, जो कर्म शांति और न्याय के लिए प्रसिद्ध स्थान है। वहीं भैरव पूजा वाराणसी के बटुक भैरव मंदिर में की जाएगी, जहां भैरव बाबा को रक्षक और मार्गदर्शक के रूप में पूजा जाता है। यह विशेष अनुष्ठान कर्मिक शांति, मानसिक संतुलन और ग्रहों के दुष्प्रभाव से राहत पाने का माध्यम माना जाता है। उत्पन्ना एकादशी के इस पवित्र दिन पर भगवान शनि और भैरव की संयुक्त उपासना से भक्त अपने जीवन में स्थिरता और सकारात्मकता का अनुभव कर सकता है।
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