जानें रथ सप्तमी को क्यों करनी चाहिए सूर्यदेव की पूजा ☀️
सनातन धर्म में रथ सप्तमी का दिन अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, माघ मास की शुक्ल सप्तमी को सूर्यदेव ने अपने रथ पर सवार होकर सम्पूर्ण संसार को अपने तेज से आलोकित करना आरंभ किया था। इसी कारण इस दिन को रथ सप्तमी के नाम से जाना जाता है। यह पर्व सूर्यदेव के जन्मोत्सव के रूप में भी बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है, इसलिए इसे सूर्य जयंती भी कहते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र सांब, जो अपने सौंदर्य और बल पर अत्यधिक अभिमान करते थे, ने एक दिन ऋषि दुर्वासा का अपमान कर दिया। इस अपमान से क्रोधित होकर ऋषि ने उन्हें कुष्ठ रोग का श्राप दे दिया। इस श्राप से परेशान होकर सांब ने नारायण के स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण से मार्गदर्शन मांगा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें सूर्यदेव की आराधना करने का सुझाव दिया। भगवान श्रीकृष्ण की सलाह पर सांब ने चंद्रभागा नदी के तट पर कठोर तपस्या की। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उन्हें दर्शन दिए और कुष्ठ रोग से मुक्ति का आशीर्वाद दिया। अपने रोग से मुक्त होने के उपरांत सांब ने अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए कोणार्क में सूर्यदेव का भव्य मंदिर बनवाया, जो आज भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का एक प्रमुख केंद्र है।
मान्यता है कि रथ सप्तमी के दिन यदि भक्त सांब की भांति सच्चे भाव से सूर्यदेव की अराधना करें, तो सूर्यदेव प्रसन्न होकर उन्हें आरोग्य और समृद्धि के साथ शारीरिक और मानसिक कल्याण का आशीर्वाद देते हैं। इसीलिए इस शुभ अवसर पर श्री मंदिर द्वारा औरंगाबाद के देव सूर्य मंदिर में सूर्य-नारायण महायज्ञ और सूर्य अर्घ्य अर्पण का आयोजन किया जा रहा है। यह मंदिर सूर्यदेव के तीनों रूपों—उदयाचल (उगता हुआ सूर्य), मध्याचल (दोपहर का सूर्य), और अस्ताचल (डूबता हुआ सूर्य)—के अद्भुत चित्रण के लिए प्रसिद्ध है। भारत का यह अनोखा मंदिर पश्चिममुखी है, जो इसे और भी विशिष्ट बनाता है। माना जाता है कि रथ सप्तमी एवं सूर्य जयंती के पावन अवसर पर इस मंदिर में सूर्य-नारायण पूजा और सूर्यस्त अर्घ्य अर्पण करने से भक्तों की सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं और उन्हें मानसिक और शारीरिक कल्याण के साथ-साथ आरोग्य का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। आप भी इस पवित्र अवसर पर भाग लेकर सूर्यदेव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करें।