खर मास को मल मास या पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। यह एक अतिरिक्त चंद्र मास होता है, जो तब आता है जब सूर्य अपनी राशि नहीं बदलता। सूर्य वर्ष 2026 में यह काल विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, खासकर कमजोर या पीड़ित सूर्य से जुड़ी आध्यात्मिक साधनाओं के लिए। सनातन धर्म में खर मास को साधना, दान, जप और आत्मशुद्धि का समय माना गया है, और इस दौरान भगवान विष्णु की उपासना का विशेष महत्व होता है।
ऐसी मान्यता है कि जब यह अतिरिक्त मास अपनी असामान्य प्रकृति के कारण सभी देवताओं द्वारा स्वीकार नहीं किया गया, तब यह भगवान विष्णु के पास गया। भगवान विष्णु ने करुणा भाव से इसे स्वीकार किया और इसे अपनी दिव्य सत्ता प्रदान करते हुए “पुरुषोत्तम मास” का नाम दिया। तभी से इस मास में की गई साधना को विशेष फलदायी माना जाता है। कहा जाता है कि इस समय किए गए जप और पाठ से पुराने कर्मों का प्रभाव शांत होता है और जीवन में शांति, संतुलन और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग खुलता है।
इसी भाव के साथ 14 दिवसीय खरमास विशेष अनुष्ठान में प्रतिदिन 11 विष्णु सहस्रनाम पाठ और आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ का आयोजन किया जाता है। विष्णु सहस्रनाम पाठ परिवार के लिए संरक्षण, स्थिरता और सकारात्मकता की भावना जागृत करता है। वहीं आदित्य हृदय स्तोत्र सूर्य तत्व को संतुलित करने का माध्यम माना जाता है, जिससे आत्मविश्वास, निर्णय क्षमता और मानसिक दृढ़ता में वृद्धि का अनुभव हो सकता है।
यह महानुष्ठान प्रयागराज के पवित्र त्रिवेणी संगम में संपन्न किया जाता है, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है। शास्त्रों में वर्णन है कि इस तीर्थ पर की गई साधना का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है और साधक को गहरी आध्यात्मिक अनुभूति प्राप्त होती है। सूर्य वर्ष 2026 के दौरान किया जाने वाला यह 14 दिवसीय खर मास विशेष अनुष्ठान परिवार की सुख-शांति, स्वास्थ्य और जीवन में संतुलन की भावना के लिए समर्पित है। यह पूजा जीवन की बाधाओं को समझने, ऊर्जा को सहेजने और ईश्वर से जुड़े रहने का एक आध्यात्मिक अवसर प्रदान कर सकती है।