मघा नक्षत्र को ऐसा समय माना जाता है जब आकाश और पितृलोक के बीच का संबंध गहराता है। कहा जाता है कि इस नक्षत्र की ऊर्जा पूर्वजों की आत्माओं तक पहुँचने और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने का माध्यम बनती है। इसके अधिष्ठाता देवता स्वयं पितर हैं, इसलिए इस नक्षत्र में किया गया तर्पण, श्राद्ध या पिंडदान सीधा पितृलोक तक पहुँचता है। परंपरा में यह विश्वास है कि जब पूर्वज प्रसन्न होते हैं, तो उनका आशीर्वाद पूरे परिवार में शांति, समृद्धि और संतुलन लाता है।
कई बार जीवन में ऐसा अनुभव होता है कि जितनी भी कोशिश करें, परिस्थितियाँ सुधरती नहीं। मेहनत करने के बाद भी सफलता पास नहीं आती, घर में बिना कारण मतभेद बढ़ जाते हैं, या बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य में रुकावटें आने लगती हैं। धर्मशास्त्रों में बताया गया है कि जब पूर्वजों की आत्माओं को उचित शांति नहीं मिलती या उनके लिए किए जाने वाले कर्म अधूरे रह जाते हैं, तब यह स्थिति पितृ दोष के रूप में जीवन में दिखाई देने लगती है।
इन्हीं भावनाओं और परंपराओं से प्रेरित होकर पितृ दोष निवारण महायज्ञ एवं काशी गंगा महाआरती का आयोजन किया जा रहा है। यह अनुष्ठान काशी के पवित्र पिशाच मोचन कुंड में संपन्न होगा, जिसे पुराणों में “मोक्ष प्रदान करने वाला तीर्थ” कहा गया है। मान्यता है कि यहाँ किए गए पितृ कर्म पूर्वजों की आत्माओं को शांति देते हैं और उन्हें ऊर्ध्व लोक की ओर अग्रसर करते हैं।
इसके पश्चात माँ गंगा के पावन अस्सी घाट पर भव्य गंगा महाआरती का आयोजन होगा। यह आरती केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति आभार और सम्मान का प्रतीक है। आरती के दौरान प्रवाहित दीपों की रोशनी मानो पितृ आत्माओं तक हमारी श्रद्धा और कृतज्ञता का संदेश पहुँचाती है।
श्री मंदिर के माध्यम से इस दिव्य अवसर में सहभागी बनकर काशी की पवित्रता और अपने पितरों की स्मृति का आदर किया जा सकता है। यह आयोजन उन सभी के लिए है जो अपने जीवन में शांति, संतुलन और पितृ कृपा का अनुभव पाना चाहते हैं।