जानिए कैसे शनिवार एवं अमावस्या के संयोग में भगवान हनुमान और शनि देव की संयुक्त पूजा से खुल सकते हैं सौभाग्य के द्वार? 🙏
शनिवार और अमावस्या का एक साथ आना धार्मिक दृष्टि से विशेष माना जाता है। शनिवार न्याय और अनुशासन के देवता शनि की उपासना के लिए शुभ माना जाता है, वहीं अमावस्या का दिन नकारात्मक प्रभावों को शांत करने और पितृ शांति के लिए महत्वपूर्ण होता है। जब ये दोनों तिथियाँ एक साथ आती हैं, तो पूजा का प्रभाव और भी गहरा माना जाता है। इस दिन की गई आराधना जीवन में धैर्य, संतुलन और मानसिक स्थिरता बनाए रखने में सहायक मानी जाती है।
सनातन परंपरा में मान्यता है कि जब कुंडली में शनि की स्थिति प्रतिकूल होती है, तो पारिवारिक कलह, कार्यों में बाधाएँ और मानसिक तनाव जैसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। शनिवार–अमावस्या के दिन की गई शनि पूजा इन प्रभावों को संतुलित करने में सहायक मानी जाती है। इसी प्रकार, भगवान हनुमान को शनि के प्रभाव को नियंत्रित करने वाले देवता के रूप में जाना जाता है।
धार्मिक कथाओं में वर्णित है कि जब रावण ने नवग्रहों को बंदी बना लिया था, तब हनुमान जी ने अपने पराक्रम और बुद्धि से शनिदेव को मुक्त किया। इस उपकार से प्रसन्न होकर शनिदेव ने वचन दिया कि जो भी भक्त श्रद्धा से हनुमान जी की पूजा करेगा, उस पर उनकी कठोर दृष्टि का प्रभाव कम रहेगा। यही कारण है कि हनुमान जी की भक्ति को शनि की दशाओं में लाभकारी माना जाता है।
उज्जैन में आयोजित 21 ब्राह्मणों द्वारा संपन्न विशेष अनुष्ठान के पुण्य फल के भागी बनें।
इस शनिवार–अमावस्या पर उज्जैन स्थित श्री नवग्रह शनि मंदिर में विशेष “शनि–हनुमान 21 ब्राह्मण अनुष्ठान” का आयोजन किया जा रहा है। इस अनुष्ठान में 21 ब्राह्मणों द्वारा 23,000 शनि मंत्रों का जाप और 1008 बार संकटमोचन हनुमान अष्टक का पाठ किया जाएगा। यह अनुष्ठान शनिदेव के प्रभावों को शांत करने, मानसिक स्थिरता लाने और जीवन में संतुलन बनाए रखने के उद्देश्य से किया जाएगा।
यह अवसर उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो साढ़ेसाती, ढैय्या या शनि की प्रतिकूल दशाओं से गुजर रहे हैं और साथ ही जीवन में आ रही देरी, बाधाओं या मानसिक अस्थिरता को दूर करना चाहते हैं। हनुमान जी और शनिदेव की संयुक्त उपासना इस विशेष दिन पर भक्तों को मन की दृढ़ता, संयम और परिस्थितियों में संतुलन बनाने का मार्ग प्रदान करती है।