देव उठनी एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है जो भगवान विष्णु के चार महीनों की योगनिद्रा से जागरण का प्रतीक है। इस चार महीने के काल को चातुर्मास कहा जाता है, जो शयनी एकादशी से देव उठनी एकादशी तक चलता है। मान्यता है कि देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करने से परिवार में सुख समृद्धि का वास होता है और जीवन से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। इस शुभ तिथि पर पुत्र कामेष्टि हवन करने से भी अत्यंत शुभ फल प्राप्त होते हैं। वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में वर्णित है कि, त्रेतायुग में गुरु वशिष्ठ ने राजा दशरथ को पुत्र कामेष्टि हवन करने की सलाह दी थी। उनके मार्गदर्शन का पालन करते हुए राजा दशरथ ने यह हवन किया था, जिससे उनकी रानियों को पुत्र की प्राप्ति हुई। इस हवन ने राजा दशरथ को भगवान राम जैसे पुत्र का पिता बनने का दिव्य सौभाग्य प्रदान किया। सूत संहिता में कहा गया है कि भगवान विष्णु स्वयं इस हवन के विशेष ज्ञान के दाता हैं। यह अनुष्ठान किसी अनुभवी पुजारी की निगरानी में संपन्न होनी चाहिए।
सनातन धर्म में भगवान विष्णु को समर्पित पुत्र कामेष्टि हवन एक महत्वपूर्ण और पवित्र अनुष्ठान माना जाता है। मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के शुभ तिथि पर पुत्र कामेष्टि हवन करने से माता-पिता अपने बच्चों के कल्याण और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए भगवान विष्णु को समर्पित देवउठनी एकादशी की शुभ तिथि पर दक्षिण भारत के तिरुनेलवेली में स्थित एट्टेलुथुपेरुमल मंदिर में विद्वान पंडितों द्वारा पुत्र कामेष्टि हवन का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और भगवान विष्णु द्वारा अपने बच्चों की समृद्धि और कल्याण का आशीष प्राप्त करें।