🔱 सनातन धर्म में मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी, जिसे काल भैरव अष्टमी भी कहा जाता है, वर्ष की सबसे शक्तिशाली तिथियों में से एक मानी जाती है। पुराणों के अनुसार, इसी दिन भगवान भैरव, भगवान शिव के उग्र और रक्षक स्वरूप के रूप में प्रकट हुए थे, ताकि धर्म की रक्षा की जा सके और नकारात्मक शक्तियों का नाश हो। जीवन में जब आपको कठिन मुकदमे, प्रतियोगी परीक्षाएँ या समाज से जुड़े दबाव जैसे संघर्षों का सामना करना पड़ता है, तब यह सब एक भारी अंधकार जैसा महसूस हो सकता है। इस अंधकार को काटने और अपनी शक्ति को पुनः स्थापित करने के लिए एक दिव्य शक्ति की आवश्यकता होती है — यही कार्य भगवान चंड भैरव का है, जो सत्य और न्याय की विजय सुनिश्चित करते हैं।
🔱 हिंदू शास्त्रों के अनुसार, भैरव के आठ स्वरूप हैं, जिन्हें अष्ट भैरव कहा जाता है। इनमें से चंड भैरव को दैवीय न्याय के सेनापति के रूप में जाना जाता है। जब अधर्म की शक्तियाँ धर्म पर हावी होने लगती हैं, तब देवताओं ने चंड भैरव का आह्वान किया। वे तेजस्वी प्रकाश के रूप में प्रकट हुए, अंधकार और भ्रम को नष्ट किया, और धर्म की रक्षा की। इसलिए चंड भैरव की विजय हमेशा सत्य और धर्म पर आधारित होती है।
🔱 इस विशेष अनुष्ठान में 1.25 लाख चंड भैरव सर्व-विजय मंत्र जप किया जाता है, जो जीवन में विजय और आत्मबल को जागृत करने वाला माना जाता है। इसके साथ होने वाला हल्दी हवन संकल्प को शुद्ध करता है और 108 दीप अर्पण प्रकाश की अंतिम विजय का प्रतीक है। यह अनुष्ठान हरिद्वार स्थित आदि शक्ति महाकाली 10 महाविद्या सिद्धपीठ में संपन्न होता है, जिससे आपके प्रयास दैवीय न्याय और धर्म शक्ति से जुड़ जाते हैं।
श्री मंदिर के माध्यम से किया गया यह विशेष पूजा अनुष्ठान, जीवन में विजय, स्पष्टता और सुरक्षा का दिव्य आशीर्वाद लाने का माना जाता है।