🙏सनातन धर्म में मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी का दिन अत्यंत शुभ माना गया है। इस तिथि को भगवान काल भैरव, जो ब्रह्मांड के कोतवाल और भगवान शिव के उग्र रूप हैं, प्रकट हुए थे। शास्त्रों में बताया गया है कि इस दिन भगवान काल भैरव की ऊर्जा विशेष रूप से सक्रिय होती है, जिससे साधक को आत्मिक मुक्ति का दुर्लभ अवसर प्राप्त होता है। इस दिन किया जाने वाला खप्पर अर्पण विशेष अनुष्ठान एक गहरी भक्ति का प्रतीक माना जाता है, जिसमें भक्त अपने जीवन के संघर्ष जैसे मानसिक थकान, बार-बार असफलता या अदृश्य भय भगवान के चरणों में समर्पित करता है ताकि वे पूरी तरह समाप्त हो सकें।
🙏इस अनुष्ठान का वास्तविक अर्थ भगवान काल भैरव के दिव्य उद्देश्य से जुड़ा है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, भगवान काल भैरव भगवान शिव के तीसरे नेत्र से प्रकट हुए थे, जब उन्हें ब्रह्मा जी के अहंकार का नाश करना था। उनके हाथ में धारण किया गया खप्पर (अस्थि पात्र) मानव अहंकार के पूर्ण नाश का प्रतीक है। यही अहंकार बंधन, दुख और बार-बार मिलने वाली असफलता का मूल कारण माना गया है। खप्पर अर्पण करने का अर्थ केवल थोड़ी राहत पाना नहीं, बल्कि उस सर्वोच्च शक्ति को आमंत्रित करना है जो हमारे भ्रम और बोझ को समाप्त करती है। “काल” का अर्थ समय और “भैरव” का अर्थ बुराई का नाश करने वाला होता है, इसलिए उन्हें ठहराव और भय के अंत का अधिपति भी कहा गया है।
🙏श्री विक्रांत भैरव मंदिर, उज्जैन में किए जाने वाले इस विशेष अनुष्ठान में आचार्य भगवान काल भैरव की दिव्य शक्ति का आह्वान करते हैं। 108 बार काल भैरव मूल मंत्र का जप किया जाता है। आपके संकल्प के साथ तिल, लाल पुष्प और भस्म जैसे पवित्र द्रव्यों को अभिषिक्त खप्पर में अर्पित किया जाता है। यह क्षण पूर्ण समर्पण का प्रतीक होता है, जब जीवन का सारा बोझ भगवान को सौंप दिया जाता है। अनुष्ठान के अंत में पवित्र भस्म से भैरव रक्षा तिलक लगाया जाता है, जो इस बात का संकेत है कि भगवान ने आपका अर्पण स्वीकार किया है और अब वे भय तथा असफलता से रक्षा करेंगे।
श्री मंदिर द्वारा आयोजित इस विशेष पूजा में भाग लेकर आप भी आत्मिक शांति, भावनात्मक हल्केपन और अदृश्य नकारात्मक प्रभावों से सुरक्षा की कामना से जुड़ सकते हैं।