कभी-कभी जीवन में एक अनदेखा बोझ महसूस होने लगता है। ऐसा लगता है जैसे कोई अदृश्य छाया ऊर्जा को कम कर रही हो, मन में बेचैनी हो या काम रुकते जा रहे हों। शास्त्रों में कहा गया है कि ऐसा अक्सर नज़र, नकारात्मक ऊर्जा या अदृश्य प्रभावों के कारण होता है। इनसे मुक्ति पाने और आत्मबल लौटाने के लिए भक्त भगवान महाकाल भैरव और माँ महाकाली की शरण में जाते हैं। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी (कालाष्टमी) के इस शुभ दिन पर इन दोनों दिव्य शक्तियों का आह्वान एक शक्तिशाली रक्षा कवच बनाता है, जो हर नकारात्मकता से सुरक्षा प्रदान करता है।
समय और शक्ति का दिव्य मिलन
शैव–शाक्त परंपरा में भगवान महाकाल भैरव और माँ महाकाली एक ही परम चेतना के दो रूप माने जाते हैं।
भैरव समय के स्वामी हैं — भय को मिटाने वाले और भक्त की रक्षा करने वाले।
महाकाली शक्ति की आदिशक्ति हैं — अंधकार को समाप्त करने वाली और आत्मा को भय एवं अज्ञान से मुक्त करने वाली।
जब दोनों की ऊर्जा एक साथ जागृत होती है, तो एक ऐसी अपराजेय दिव्य शक्ति प्रकट होती है जो भय, बाधाओं और नकारात्मक प्रभावों को समाप्त कर देती है। यह यज्ञ उसी संयुक्त ऊर्जा को बुलाने के लिए किया जाता है।
इस महायज्ञ में आचार्य पहले
21,000 रक्षा बीज मंत्र का जाप करते हैं —
जहाँ भैरव का बीज मंत्र “ह्रौं” और काली का बीज मंत्र “क्रीं” मिलकर एक शुद्ध, रक्षक ऊर्जा क्षेत्र बनाते हैं।
इसके बाद
108 बार काल भैरव अष्टकम का पाठ किया जाता है,
जो मन, हृदय और आत्मा को स्थिरता और साहस प्रदान करता है।
अंत में
माँ महाकाली महायज्ञ में अग्नि में आहुति दी जाती है —
जो भय, दर्द और कमजोरी को दिव्य शक्ति और साहस में परिवर्तित करने का प्रतीक है।
भैरव जयंती का विशेष प्रभाव
भैरव जयंती भगवान काल भैरव के प्राकट्य का दिन है।
इस दिन किया गया यह यज्ञ और भी अधिक प्रभावशाली माना जाता है, क्योंकि इसी दिन भैरव की रक्षक ऊर्जा पृथ्वी पर सबसे अधिक सक्रिय होती है।
श्री मंदिर द्वारा किए जाने वाले इस महाकाल–महाकाली महायज्ञ से आपके जीवन में शक्ति, निडरता और दिव्य सुरक्षा का आशीर्वाद आने की प्रार्थना की जाती है।