सनातन धर्म में सोमवार और एकादशी दोनों ही दिन आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। सोमवार भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति को मजबूत करता है, जबकि एकादशी उस पूजा की पवित्रता, भक्ति और इच्छापूर्ति शक्ति को बढ़ा देती है। ऐसा माना जाता है कि इस शुभ संयोजन पर व्रत रखकर और शिव-पार्वती की पूजा करने से ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है, सच्ची इच्छाएँ पूरी होती हैं और संबंधों में सामंजस्य आता है। अविवाहित भक्त अपनी आदर्श जीवनसंगिनी या जीवनसंगी प्राप्त करने के लिए पूजा करते हैं, जबकि विवाहित जोड़े इसे अपने वैवाहिक प्रेम और संबंधों को मजबूत करने तथा जीवन में स्थायी शांति लाने के लिए करते हैं।
🔱 त्रियुगीनारायण मंदिर में शिव पूजा का विशेष महत्व
उत्तराखंड में स्थित यह प्राचीन हिमालयी मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती के दैविक विवाह स्थल के रूप में प्रसिद्ध है, जिसे स्वयं भगवान विष्णु ने देखा था। मंदिर में प्रतिष्ठित शिवलिंग और अखंड धुनी स्थित है, जिसे उनके दिव्य विवाह के समय प्रज्वलित किया गया था। चारों ओर स्थित पवित्र कुंड – ब्रह्मा, विष्णु, सरस्वती और रुद्र कहा जाता है कि इनमें विवाह के मूल जल का स्थान है। यह स्थल वैवाहिक समरसता, आध्यात्मिक पूर्णता और दैवीय युगल ऊर्जा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
त्रियुगीनारायण में विशेष अनुष्ठान:
🔸 शिव-पार्वती विवाह पूजा: भगवान शिव और माता पार्वती के दैवीय विवाह का पवित्र पुन:अनुष्ठान, जिसमें विवाह मंडप, कलश स्थापना, कन्यादान और श्रृंगार शामिल है। यह पूजा विशेष रूप से विवाहित जोड़ों और विवाह की इच्छा रखने वालों के लिए शुभ मानी जाती है।
🔸 अर्धनारीश्वर पूजा: भगवान शिव और माता पार्वती के अर्धनारीश्वर रूप की पूजा, जो दैवीय संतुलन, पुरुष और महिला ऊर्जा का सामंजस्य दर्शाती है।
🔸 देवी महात्म्य पाठ: देवी महात्म्य के पवित्र श्लोकों का पाठ, जो नकारात्मकता, असंतुलन और रिश्तों में भावनात्मक बाधाओं को दूर करने के लिए किया जाता है।
आप भी श्री मंदिर के माध्यम से इस पवित्र अनुष्ठान में भाग लेकर शिव-शक्ति के आशीर्वाद को अपने जीवन में आमंत्रित कर सकते हैं और प्रेम, सामंजस्य और भक्ति से पूर्ण जीवन का अनुभव कर सकते हैं।