✨ पाँच तीर्थ, एक संयुक्त अनुष्ठान — इस गंगा जयंती दिव्यता का अद्वितीय अनुभव करें 🙏🏻 🌊
माँ गंगा हमारे सनातन धर्म में केवल एक नदी नहीं, बल्कि मोक्ष देने वाली देवी के रूप में पूजनीय हैं। वहीं गंगा सप्तमी, जिसे गंगा जयंती या जाह्नु सप्तमी भी कहा जाता है, एक अत्यंत पावन दिवस है, जो माँ गंगा के पुनर्जन्म की दिव्य स्मृति से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि राजा भगीरथ ने अपने पितरों की मुक्ति के लिए कठोर तपस्या कर माँ गंगा को पृथ्वी पर लाने का संकल्प लिया था। उनके आह्वान पर जब माँ गंगा स्वर्ग से उतरीं, तो उनके तीव्र प्रवाह से पृथ्वी संकट में पड़ सकती थी। उस संकट से रक्षा के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में समेट लिया और धीरे-धीरे उनका प्रवाह पृथ्वी पर छोड़ा। जब माँ गंगा राजा भगीरथ के पीछे-पीछे जा रही थीं, तो उनकी प्रचंड धारा ने ऋषि जाह्नु का आश्रम बहा दिया। इस पर क्रोधित होकर ऋषि जाह्नु ने गंगा को पी लिया। बाद में राजा भगीरथ और देवताओं की विनती पर प्रसन्न होकर ऋषि ने गंगा को अपने कान से पुनः प्रकट किया। इसी कारण से उन्हें जाह्नवी अर्थात ऋषि जाह्नु की पुत्री कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि यह दिव्य घटना वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को घटी थी, जिससे यह दिन अत्यंत पुण्यदायक माना गया है। इस दिन माँ गंगा की विशेष पूजा का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह दिन पुनर्जन्म, जन्मों के पापों से मुक्ति और ईश्वरीय कृपा प्राप्त करने का एक अद्वितीय और शुभ अवसर प्रदान करता है। इसीलिए गंगा सप्तमी अर्थात गंगा जयंती के पावन अवसर पर श्री मंदिर के माध्यम से एक विशेष अनुष्ठान आयोजित किया जा रहा है, जिसमें भाग लेकर भक्त एक नहीं बल्कि पाँचों अलग-अलग तीर्थों की दिव्यता का अनुभव कर सकते हैं। दरअसल माँ गंगा का प्रवाह भारत के पाँच प्रमुख तीर्थों से होकर गुजरता है, जिनकी आध्यात्मिक शक्ति को इस प्रकार समझा जा सकता है:
गंगोत्री धाम – गंगा का उद्गम स्थल, जहाँ राजा भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने माँ गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किया। यही से उनके पवित्र प्रवाह की शुरुआत मानी जाती है।
उत्तरकाशी (विश्वनाथ घाट) – "उत्तर की काशी", जहाँ माँ गंगा ध्यान और तप की ऊर्जा से युक्त होती हैं। मान्यता है कि कलिकाल में यह स्थान काशी का विकल्प बनेगा।
हरिद्वार (गंगा घाट) – मोक्ष का प्रवेश द्वार, जहाँ भक्त माँ गंगा में स्नान कर जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति की कामना करते हैं।
प्रयागराज (त्रिवेणी संगम) – गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम स्थल, जहाँ माँ गंगा अन्य दो दिव्य धाराओं के साथ मिलकर आत्माओं को मुक्ति का मार्ग प्रदान करती हैं।
काशी (अस्सी घाट) – जहाँ माँ गंगा काल को भी पराजित करती हैं और मोक्षदायिनी बनकर भगवान शिव के संग निवास करती हैं। इसे मुक्ति का अंतिम पड़ाव माना जाता है।
मान्यता है कि इन पवित्र तीर्थ स्थलों पर माँ गंगा को समर्पित अनुष्ठान भक्तों को जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति प्रदान करते हैं और उनके जीवन में आनंद, शांति और आध्यात्मिक उन्नति का संचार करते हैं। इस विशेष अनुष्ठान में गंगा गायत्री मंत्र जाप, दूध से माँ गंगा का अभिषेक तथा रुद्राभिषेक शामिल हैं, जो साधकों के जीवन में शांति, पवित्रता और ईश्वरीय अनुकंपा के द्वार खोलते हैं। आप भी इस पावन अवसर पर माँ गंगा की कृपा प्राप्त करें और अपने जीवन को आध्यात्मिक ऊर्जा से भरकर उसे दिव्यता की ओर अग्रसर करें।