क्या जीवन में चाहिए मानसिक और शारीरिक कल्याण के साथ-साथ संतुलन और शांति आशीर्वाद?
भगवान शिव को सनातन धर्म में "महादेव" और 'संहारकर्ता' के रूप में पूजा जाता है, क्योंकि वे सृष्टि के संहार और पुनर्निर्माण के चक्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि भगवान शिव को प्रसन्न करना हो, तो सोमवार का दिन सबसे श्रेष्ठ होता है। इस बार सोमवार हस्त नक्षत्र के शुभ संयोग के साथ पड़ रहा है, जो भगवान शिव और चंद्रमा के संयुक्त अनुष्ठान के लिए एक अत्यंत शुभ अवसर माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चंद्रमा स्वयं हस्त नक्षत्र के स्वामी हैं। इसलिए ऐसा माना जाता है कि इस विशेष संयोग पर भगवान शिव और चंद्रमा की संयुक्त पूजा करने से भक्तों को मानसिक और शारीरिक कल्याण का आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है।
एक प्राचीन कथा के अनुसार, राजा दक्ष द्वारा जब चंद्रमा को शाप दिया गया था, तो वह क्षय रोग से ग्रस्त हो गए थे और उनकी सारी कलाएँ समाप्त हो गईं थी। तब नारद मुनि ने चंद्रमा को भगवान शिव की पूजा करने की सलाह दी, और भगवान शिव के आशीर्वाद से चंद्रमा का रोग ठीक हो गया। इसके बाद चंद्रमा ने भगवान शिव से उन्हें अपने सिर पर धारण करने का आग्रह किया, जिसे भगवान शिव ने स्वीकार कर लिया। तभी से भगवान शिव और चंद्रमा के संयुक्त अनुष्ठान का महत्व प्रकाश में आया। ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा का एक नाम "मृत्युसंहारक" भी है, जिसका अर्थ है "मृत्यु को रोकने वाला", इसलिए ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा मृत्यु को विलंबित कर सकते हैं। वहीं महामृत्युंजय मंत्र के माध्यम से पूजे जाने वाले भगवान शिव को मृत्यु पर विजय प्राप्त कराने वाला माना जाता है, और इस पहलू में चंद्रमा और शिव दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए माने जाते हैं। चंद्रमा का ठंडा और सुखदायक प्रभाव भगवान शिव की विनाशकारी शक्ति का पूरक है, जो जीवन के संरक्षण और संतुलन का प्रतीक है। इसलिए, सोमवार और हस्त नक्षत्र के शुभ संयोग पर श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में 11,000 महामृत्युंजय मंत्र जाप, 10,000 चंद्र बीज मंत्र जाप एवं हवन किया जा रहा है। आप भी इस विशेष अनुष्ठान में श्री मंदिर के माध्यम से भाग लें और भगवान शिव और चंद्रमा से मानसिक और शारीरिक कल्याण का आशीर्वाद प्राप्त करें।